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यदि मन में श्रद्धा हो व कार्य करने की इच्छा हो तो रास्ते स्वतः ही खुलते जाते हैं। बात उन दिनों की है जब श्री दुलीचन्द जी जैन (पुत्र स्वo कश्मीरी लाल जैन) का परिवार 1990-91 में जयपुर से स्थानान्तरण होकर अलवर काला कुआं स्थित अपने मकान में आये लेकिन यहां आते ही जैन मंदिर की कमी लगी। कालाकुआं में रहने वाले अन्य कुछ जैन परिवारों को भी दर्शन करने के लिये जैन नसिया जी जाना पड़ता था जिसमें बुजुर्गों, बच्चों को खासी परेशानी होती थी और उन्हें ज्यादा परेशानी होती थी जिनका रोजाना देव दर्शन का नियम था। कई बार मन में वेदना होती थी और वहां रहने वाले जैन बुजुर्गों ने दुलीचन्द जी के परिवार से कहा कि कोशिश करके कालाकुआं क्षेत्र में जैन मंदिर बनवाया जाये। इस प्रयास को मूर्तरूप देने के लिए दुली चन्द जी ने यहाँ चार पांच लोगों से सम्पर्क किया जिसमें सर्व श्री सूरजमल जी बाकलीवाल, खेमचन्द जी (अखैपुरा वाले) धर्मचन्द जैन यूको बैंक, अजित जैन, हरिओम जैन से यह जानने का प्रयास किया कि कालाकुओं व आस-पास कॉलोनी में कितने जैन परिवार रह रहे हैं ? इसके बारे में सटीक जानकारी नहीं होने के कारण सर्वप्रथम यह तय किया गया कि काला कुआं व आसपास के क्षेत्र में जैन परिवारों की गणना की जाये तभी यह काम आगे बढ़ सकता है। अतः सभी लोगों ने इसके लिए प्रयास शुरू कर दिये तथा लगभग एक महिने तक लगातार प्रयास करने पर यह विवरण बनाने में सफ लता मिली कि काला कुआं व आसपास के क्षेत्र में लगभग 70 से 75 घर जैन परिवारों के हैं। इस संख्या ने इस टीम को बल दिया और फिर जैन मंदिर बनाने की कल्पना को साकार रूप दिया जाने लगा। इस सम्बन्ध में जब श्री दिगम्बर जैन अग्रवाल पंचायती मंदिर के तत्कालीन अध्यक्ष श्री खिल्लीमल जैन को पत्र लिखा तो उन्होंने कहा कि कोई जमीन-मकान निगाह में हो तो तलाश करें तो क्षेत्र के लोगों में आशा की एक किरण नजर आने लगी और जमीन अथवा मकान की तलाश शुरू हो गई जिस पर शीघ्र ही एक मकान का ऑफर मिला जो 110000/- मांग रहा था। तुरन्त ही अध्यक्ष श्री खिल्लीमल जैन को अवगत कराया तथा श्री खिल्लीमल जैन व मंत्री श्री बच्चूसिंह जैन ने इस कार्य को तुरन्त करने की सहमति प्रदान की और इन्हीं की उपस्थिति में अप्रैल मई 1992 में उक्त मकान का सौदा कर बयाना राशि समाज द्वारा दी गई और कानूनी प्रक्रियाएं पूरी की। इसके पश्चात श्री दिगम्बर जैन अग्रवाल पंचायती मंदिर कमेटी द्वारा मंदिर बनाने की रूपरेखा तैयार होने लगी, किन्तु वहाँ भी कुछ समस्या फण्ड की थी तथा इसकी पूर्ति के रास्ते तलाशे गये तो श्री दिगम्बर जैन अग्रवाल मन्दिर कमेटी के सदस्यों ने आपसी सहमति से काफी कलेक्शन किया और कार्य शुरू करने की सहमति प्रदान की। इस संकल्प के साथ ही शिलान्यास का मुहूर्त तय कर 15 अगस्त 1992 को शिलान्यास किया गया। शिलान्यास कार्यक्रम के अन्तर्गत भव्य कलश यात्रा श्री दिगम्बर जैन अग्रवाल पंचायती मंदिर बलजी राठौड की गली से प्रारम्भ हुई जिसमें समाज के सभी वर्गो द्वारा बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया गया। उक्त भव्य कलश यात्रा जुलूस का सफर लगभग 5-6 किलोमीटर दूरी का था और रास्ते में काफी धूप भी थी लेकिन लोगों के उत्साह में कोई कमी नहीं थी। जैसे जुलूस कालाकुआं पहुंचा तो अचानक चमत्कार हुआ और इन्द्र देव ने भी वर्षों की झड़ी लगा दी जिस पर भगवान महावीर के जयकारों से पूरी कॉलोनी गुंजायमान हो उठी और लोगों का उत्साह देखते ही बनता था। लगभग 10.30 बजे पंडित श्री सनतकुमार जी जयपुर के सानिध्य में विधिवत रूप से मंदिर का शिलान्यास सम्पन्न किया गया जिसमें समाज के सभी लोगों का पूर्ण सहयोग रहा। निर्माण कार्य 15 अगस्त 1992 से प्रारम्भ होकर 15 जनवरी 1993 तक पूर्ण करा लिया गया। इसी बीच परमपूज्य आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज अलावड़ा वालों के आशीर्वाद से एवं पंडित श्री मोती लाल जी मार्तण्ड एवं सुधीर जी मार्तण्ड जी के सानिध्य में दिनांक 10 जनवरी से 15 जनवरी 1993 तक भव्य पंचकल्याणक महोत्सव बड़े उत्साह पूर्वक सम्पन्न कर मंदिर जी में भगवान महावीर की खडगासन प्रतिमा विराजमान की गई। मन्दिर जी के शिखर निर्माण में जयन्ती परिवार का योगदान रहा। मंदिर में मूर्ति एवं वेदी के पुण्यजक श्री बच्चूसिंह जैन, धर्मचन्द जैन व अनिल जैन राखी परिवार है।

मिनी पंचकल्याणक बनी भव्य पंचकल्याणक

शिलान्यास के समय ही भगवान को विराजमान करने का मुहुर्त भी मन्नूजी पंडित जी ने निकाल दिया था। समय कम था इसलिए हमने मिनी पंचकल्याणक करने के भाव बनाए व आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज से आशीर्वाद प्राप्त किया तथा पंडित मोतीलाल जी मार्तण्ड ऋषभदेव केशरिया जी से प्रार्थना की तो उन्होंने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी जिससे सभी का मन मयूर नाच उठा और हम व्यवस्थाओं में जुट गए। श्री खिल्लीमल जैन अध्यक्ष ने इस मंदिर का निर्माण खड़े होकर पूर्ण कराया। शायद पांच माह की अल्पावधि में शिखरबंद मंदिर का निर्माण अभूतपूर्व बात थी। महावीर जिनालय के लिये भगवान महावीर की मूर्ति को जयपुर से कर्फ्यू के दौरान अनुमति लेकर आए व वेदी का निर्माण बहुत शीघ्रता में कराया गया। यह भगवान महावीर का ही आशीर्वाद था कि मिनी पंचकल्याणक भव्य पंचकल्याणक हो गई व भव्य मंदिर में दिव्य मूर्ति स्थापित हुई। इस महोत्सव में श्री प्रकाशचंद कोठारी का भी विशेष योगदान रहा है। जो पंचकल्याणक महोत्सव समिति के अध्यक्ष थे। समाज के सभी वर्गों के श्रावकगण मंदिर जी में सुबह-शाम दर्शन पूजन व आरती का लाभ ले रहे हैं एवं मंदिर का नाम महावीर जिनालय रखा गया है। समय बीतता गया मंदिर के अन्दर कांच का कार्य कर नयनाभिराम चित्राम् का कार्य जयन्ती परिवार, श्री शिवचरण, अशोक कुमार बिजली वाले एवं कालाकुआँ व मंगल विहार के श्रावकों द्वारा कराया।

यदि मन में श्रद्धा हो व कार्य करने की इच्छा हो तो रास्ते स्वतः ही खुलते जाते हैं। बात उन दिनों की है जब श्री दुलीचन्द जी जैन (पुत्र स्वo कश्मीरी लाल जैन) का परिवार 1990-91 में जयपुर से स्थानान्तरण होकर अलवर काला कुआं स्थित अपने मकान में आये लेकिन यहां आते ही जैन मंदिर की कमी लगी। कालाकुआं में रहने वाले अन्य कुछ जैन परिवारों को भी दर्शन करने के लिये जैन नसिया जी जाना पड़ता था जिसमें बुजुर्गों, बच्चों को खासी परेशानी होती थी और उन्हें ज्यादा परेशानी होती थी जिनका रोजाना देव दर्शन का नियम था। कई बार मन में वेदना होती थी और वहां रहने वाले जैन बुजुर्गों ने दुलीचन्द जी के परिवार से कहा कि कोशिश करके कालाकुआं क्षेत्र में जैन मंदिर बनवाया जाये। इस प्रयास को मूर्तरूप देने के लिए दुली चन्द जी ने यहाँ चार पांच लोगों से सम्पर्क किया जिसमें सर्व श्री सूरजमल जी बाकलीवाल, खेमचन्द जी (अखैपुरा वाले) धर्मचन्द जैन यूको बैंक, अजित जैन, हरिओम जैन से यह जानने का प्रयास किया कि कालाकुओं व आस-पास कॉलोनी में कितने जैन परिवार रह रहे हैं ? इसके बारे में सटीक जानकारी नहीं होने के कारण सर्वप्रथम यह तय किया गया कि काला कुआं व आसपास के क्षेत्र में जैन परिवारों की गणना की जाये तभी यह काम आगे बढ़ सकता है। अतः सभी लोगों ने इसके लिए प्रयास शुरू कर दिये तथा लगभग एक महिने तक लगातार प्रयास करने पर यह विवरण बनाने में सफ लता मिली कि काला कुआं व आसपास के क्षेत्र में लगभग 70 से 75 घर जैन परिवारों के हैं। इस संख्या ने इस टीम को बल दिया और फिर जैन मंदिर बनाने की कल्पना को साकार रूप दिया जाने लगा। इस सम्बन्ध में जब श्री दिगम्बर जैन अग्रवाल पंचायती मंदिर के तत्कालीन अध्यक्ष श्री खिल्लीमल जैन को पत्र लिखा तो उन्होंने कहा कि कोई जमीन-मकान निगाह में हो तो तलाश करें तो क्षेत्र के लोगों में आशा की एक किरण नजर आने लगी और जमीन अथवा मकान की तलाश शुरू हो गई जिस पर शीघ्र ही एक मकान का ऑफर मिला जो 110000/- मांग रहा था। तुरन्त ही अध्यक्ष श्री खिल्लीमल जैन को अवगत कराया तथा श्री खिल्लीमल जैन व मंत्री श्री बच्चूसिंह जैन ने इस कार्य को तुरन्त करने की सहमति प्रदान की और इन्हीं की उपस्थिति में अप्रैल मई 1992 में उक्त मकान का सौदा कर बयाना राशि समाज द्वारा दी गई और कानूनी प्रक्रियाएं पूरी की। इसके पश्चात श्री दिगम्बर जैन अग्रवाल पंचायती मंदिर कमेटी द्वारा मंदिर बनाने की रूपरेखा तैयार होने लगी, किन्तु वहाँ भी कुछ समस्या फण्ड की थी तथा इसकी पूर्ति के रास्ते तलाशे गये तो श्री दिगम्बर जैन अग्रवाल मन्दिर कमेटी के सदस्यों ने आपसी सहमति से काफी कलेक्शन किया और कार्य शुरू करने की सहमति प्रदान की। इस संकल्प के साथ ही शिलान्यास का मुहूर्त तय कर 15 अगस्त 1992 को शिलान्यास किया गया। शिलान्यास कार्यक्रम के अन्तर्गत भव्य कलश यात्रा श्री दिगम्बर जैन अग्रवाल पंचायती मंदिर बलजी राठौड की गली से प्रारम्भ हुई जिसमें समाज के सभी वर्गो द्वारा बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया गया। उक्त भव्य कलश यात्रा जुलूस का सफर लगभग 5-6 किलोमीटर दूरी का था और रास्ते में काफी धूप भी थी लेकिन लोगों के उत्साह में कोई कमी नहीं थी। जैसे जुलूस कालाकुआं पहुंचा तो अचानक चमत्कार हुआ और इन्द्र देव ने भी वर्षों की झड़ी लगा दी जिस पर भगवान महावीर के जयकारों से पूरी कॉलोनी गुंजायमान हो उठी और लोगों का उत्साह देखते ही बनता था। लगभग 10.30 बजे पंडित श्री सनतकुमार जी जयपुर के सानिध्य में विधिवत रूप से मंदिर का शिलान्यास सम्पन्न किया गया जिसमें समाज के सभी लोगों का पूर्ण सहयोग रहा। निर्माण कार्य 15 अगस्त 1992 से प्रारम्भ होकर 15 जनवरी 1993 तक पूर्ण करा लिया गया। इसी बीच परमपूज्य आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज अलावड़ा वालों के आशीर्वाद से एवं पंडित श्री मोती लाल जी मार्तण्ड एवं सुधीर जी मार्तण्ड जी के सानिध्य में दिनांक 10 जनवरी से 15 जनवरी 1993 तक भव्य पंचकल्याणक महोत्सव बड़े उत्साह पूर्वक सम्पन्न कर मंदिर जी में भगवान महावीर की खडगासन प्रतिमा विराजमान की गई। मन्दिर जी के शिखर निर्माण में जयन्ती परिवार का योगदान रहा। मंदिर में मूर्ति एवं वेदी के पुण्यजक श्री बच्चूसिंह जैन, धर्मचन्द जैन व अनिल जैन राखी परिवार है।

मिनी पंचकल्याणक बनी भव्य पंचकल्याणक

शिलान्यास के समय ही भगवान को विराजमान करने का मुहुर्त भी मन्नूजी पंडित जी ने निकाल दिया था। समय कम था इसलिए हमने मिनी पंचकल्याणक करने के भाव बनाए व आचार्य श्री शांति सागर जी महाराज से आशीर्वाद प्राप्त किया तथा पंडित मोतीलाल जी मार्तण्ड ऋषभदेव केशरिया जी से प्रार्थना की तो उन्होंने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी जिससे सभी का मन मयूर नाच उठा और हम व्यवस्थाओं में जुट गए। श्री खिल्लीमल जैन अध्यक्ष ने इस मंदिर का निर्माण खड़े होकर पूर्ण कराया। शायद पांच माह की अल्पावधि में शिखरबंद मंदिर का निर्माण अभूतपूर्व बात थी। महावीर जिनालय के लिये भगवान महावीर की मूर्ति को जयपुर से कर्फ्यू के दौरान अनुमति लेकर आए व वेदी का निर्माण बहुत शीघ्रता में कराया गया। यह भगवान महावीर का ही आशीर्वाद था कि मिनी पंचकल्याणक भव्य पंचकल्याणक हो गई व भव्य मंदिर में दिव्य मूर्ति स्थापित हुई। इस महोत्सव में श्री प्रकाशचंद कोठारी का भी विशेष योगदान रहा है। जो पंचकल्याणक महोत्सव समिति के अध्यक्ष थे। समाज के सभी वर्गों के श्रावकगण मंदिर जी में सुबह-शाम दर्शन पूजन व आरती का लाभ ले रहे हैं एवं मंदिर का नाम महावीर जिनालय रखा गया है। समय बीतता गया मंदिर के अन्दर कांच का कार्य कर नयनाभिराम चित्राम् का कार्य जयन्ती परिवार, श्री शिवचरण, अशोक कुमार बिजली वाले एवं कालाकुआँ व मंगल विहार के श्रावकों द्वारा कराया।


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