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श्री अहिक्षेत्र पार्श्वनाथ अतिशय तीर्थ क्षेत्र दिगम्बर जैन मंदिर, बरेली जिले अंतर्गत आमला कस्बे के एक छोटे से गाँव राम नगर के समीप के क्षेत्र में है । जैन धर्म के 23वे तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथजी का जन्म पौष कृष्ण दशमी तिथि को तीर्थकर महावीर से 250 वर्ष पहले ईसा-पूर्व नौवी शताब्दी में वाराणसी में हुआ था । पार्श्वनाथ का चिन्ह सर्प, यक्ष, मातंग, चैत्यवृक्ष, धव, यक्षिणी- कुष्माडी है । काशी देश की नगरी वाराणसी के नरेश अश्वसेन इनके पिता थे और उनकी माता का नाम वामा देवी था । भगवान पार्श्वनाथ जी ने जिस धर्म का उपदेश दिया, वह किसी भी विशेष धर्म के लिए न था, बल्कि मानव हित में एक विशुद्ध धर्म था जो किसी कुल, जाती या वर्ण में सिमटा नहीं था ।भगवान पार्श्वनाथजी ने आज से लगभग अठ्ठाईस सौ वर्ष पूर्व तपस्या करके इस स्थान पर केवल ज्ञान को प्राप्त किया था । जब भगवान पार्श्वनाथ मुनि अवस्था में तपस्या कर रहे थे, उस समय उनके दस भव के बैरी कमठ के जीव जो व्यन्तर वासी संबर देव के रूप में अपना विमान तपस्या में लीन प्रभु पार्श्वनाथ के ऊपर से नहीं निकाल सका और रुक गया चूँकि उत्तम संहनन और चरण शरीरी के ऊपर से गमन नही हो सकता और कमठ का जीव पूर्व भव के बैर का स्मरण कर क्रोध से तिलमिला उठा और अपने मायामयी भेष उत्पन्न कर घोर वर्षा की, भीषण पवन को  चलाया, अनेका-अनेक अस्त्र-शस्त्रों, ओलो-शोलो से प्रहार किया पर पार्श्व प्रभु क्षुब्ध नहीं हुए और अपने ध्यान में लीन रहे । प्रभु के ऊपर कमठ के जीव का उपसर्ग देख कर धरणेन्द्र और पद्मावती ने फण मण्डप रचाकर अपनी भक्ति प्रदर्शित की और उपसर्ग निवारण किया । धरणेन्द्र ने अपना फड़क वजमय तान दिया और पद्मावती ने भगवान को मस्तक पर  धारण कर उपसर्ग निवारण किया । धरणेन्द्र ने भगवान को सब ओर से घेरकर अपने फणों को ऊपर उठा लिया और देवी पद्मावती वज्रमय छत्र तानकर खड़ी हो गयी । इस प्रकार अपना सारा प्रयास विफल हुआ जानकर असुर संबर देव का साहस टूट गया और समस्त माया समेटकर प्रभु के शरण में आ गया और सच्चे मन से अपने दुष्कृत के प्रति पश्चाताप करता हुआ नमन हुआ । अहिक्षेत्र मंदिर की और अधिक जानकारी आप लेख के सबसे नीचे के लगाए गए चित्र से प्राप्त कर सकते जो वहाँ के मंदिर के दीवार पर लिखी हुई थी ।

अहिक्षेत्र  मंदिर के दर्शन

जैन मंदिर का प्रवेश द्वार पर एक लोहे का बड़ा दरवाजा लगा हुआ है । यहाँ से आगे प्रवेश करने पर मंदिर के  एक खुले हुए बड़े प्रांगण में पहुँच जाते है । पूरा प्रांगण लाल पत्थर का बना हुआ है जो की सूरज की धूप पड़ने के कारण किसी गर्म तवे के सामान गर्म था । प्रवेश द्वार के सामने मंदिर परिसर का मुख्य मंदिर श्री पार्श्वनाथ स्वामी का नजर आ आता है । अपने जूते-चप्पल उतार कर मुख्य मंदिर के दर्शन करने पहुँच जाते है । मंदिर के अंदर सामने ही एक काँच के एक बॉक्स में स्वामी पार्श्वनाथ जी के ध्यान अवस्था में श्यामवर्ण की प्रतिमा के दर्शन होते है । मंदिर के अंदर ही जैन धर्म के अन्य देवी-देवताओ के भी दर्शन होते है । मुख्य मंदिर से बाहर आने पर प्रांगण की दाई तरफ यहाँ का दूसरे मंदिर श्री अहिक्षेत्र पार्श्वनाथ तीस चौबीसी मंदिर में चल दिए  है । प्रवेश करते ही मंदिर के अंदर एक अनोखा ही रूप नजर आता है । मंदिर के दस कमल के फूल बने हुए है और हर कमल का फूल तीन भागो में विभाजित है, और हर भाग के कमल के चौबीस पत्तों में हर पत्ते पर स्वामी की श्वेत वर्ण की मूर्ति  विराजमान है । मंदिर के अंदर सामने भगवान पार्श्वनाथ जी की खड़े अवस्था में श्यामवर्ण की आदमकद प्रतिमा विराजमान है और उनके ऊपर नाग फन छत्र के रूप में बना हुआ है । इस मंदिर के दर्शन करने के बाद हम लोग क्षेत्र तीसरे मंदिर में चल दिए । इस मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ जी की श्यामवर्ण की मूर्ति के साथ धरणेन्द्र देव व माता पद्मावती देवी के दर्शन किए।

श्री अहिक्षेत्र पार्श्वनाथ अतिशय तीर्थ क्षेत्र दिगम्बर जैन मंदिर, बरेली जिले अंतर्गत आमला कस्बे के एक छोटे से गाँव राम नगर के समीप के क्षेत्र में है । जैन धर्म के 23वे तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथजी का जन्म पौष कृष्ण दशमी तिथि को तीर्थकर महावीर से 250 वर्ष पहले ईसा-पूर्व नौवी शताब्दी में वाराणसी में हुआ था । पार्श्वनाथ का चिन्ह सर्प, यक्ष, मातंग, चैत्यवृक्ष, धव, यक्षिणी- कुष्माडी है । काशी देश की नगरी वाराणसी के नरेश अश्वसेन इनके पिता थे और उनकी माता का नाम वामा देवी था । भगवान पार्श्वनाथ जी ने जिस धर्म का उपदेश दिया, वह किसी भी विशेष धर्म के लिए न था, बल्कि मानव हित में एक विशुद्ध धर्म था जो किसी कुल, जाती या वर्ण में सिमटा नहीं था ।भगवान पार्श्वनाथजी ने आज से लगभग अठ्ठाईस सौ वर्ष पूर्व तपस्या करके इस स्थान पर केवल ज्ञान को प्राप्त किया था । जब भगवान पार्श्वनाथ मुनि अवस्था में तपस्या कर रहे थे, उस समय उनके दस भव के बैरी कमठ के जीव जो व्यन्तर वासी संबर देव के रूप में अपना विमान तपस्या में लीन प्रभु पार्श्वनाथ के ऊपर से नहीं निकाल सका और रुक गया चूँकि उत्तम संहनन और चरण शरीरी के ऊपर से गमन नही हो सकता और कमठ का जीव पूर्व भव के बैर का स्मरण कर क्रोध से तिलमिला उठा और अपने मायामयी भेष उत्पन्न कर घोर वर्षा की, भीषण पवन को  चलाया, अनेका-अनेक अस्त्र-शस्त्रों, ओलो-शोलो से प्रहार किया पर पार्श्व प्रभु क्षुब्ध नहीं हुए और अपने ध्यान में लीन रहे । प्रभु के ऊपर कमठ के जीव का उपसर्ग देख कर धरणेन्द्र और पद्मावती ने फण मण्डप रचाकर अपनी भक्ति प्रदर्शित की और उपसर्ग निवारण किया । धरणेन्द्र ने अपना फड़क वजमय तान दिया और पद्मावती ने भगवान को मस्तक पर  धारण कर उपसर्ग निवारण किया । धरणेन्द्र ने भगवान को सब ओर से घेरकर अपने फणों को ऊपर उठा लिया और देवी पद्मावती वज्रमय छत्र तानकर खड़ी हो गयी । इस प्रकार अपना सारा प्रयास विफल हुआ जानकर असुर संबर देव का साहस टूट गया और समस्त माया समेटकर प्रभु के शरण में आ गया और सच्चे मन से अपने दुष्कृत के प्रति पश्चाताप करता हुआ नमन हुआ । अहिक्षेत्र मंदिर की और अधिक जानकारी आप लेख के सबसे नीचे के लगाए गए चित्र से प्राप्त कर सकते जो वहाँ के मंदिर के दीवार पर लिखी हुई थी ।

अहिक्षेत्र  मंदिर के दर्शन

जैन मंदिर का प्रवेश द्वार पर एक लोहे का बड़ा दरवाजा लगा हुआ है । यहाँ से आगे प्रवेश करने पर मंदिर के  एक खुले हुए बड़े प्रांगण में पहुँच जाते है । पूरा प्रांगण लाल पत्थर का बना हुआ है जो की सूरज की धूप पड़ने के कारण किसी गर्म तवे के सामान गर्म था । प्रवेश द्वार के सामने मंदिर परिसर का मुख्य मंदिर श्री पार्श्वनाथ स्वामी का नजर आ आता है । अपने जूते-चप्पल उतार कर मुख्य मंदिर के दर्शन करने पहुँच जाते है । मंदिर के अंदर सामने ही एक काँच के एक बॉक्स में स्वामी पार्श्वनाथ जी के ध्यान अवस्था में श्यामवर्ण की प्रतिमा के दर्शन होते है । मंदिर के अंदर ही जैन धर्म के अन्य देवी-देवताओ के भी दर्शन होते है । मुख्य मंदिर से बाहर आने पर प्रांगण की दाई तरफ यहाँ का दूसरे मंदिर श्री अहिक्षेत्र पार्श्वनाथ तीस चौबीसी मंदिर में चल दिए  है । प्रवेश करते ही मंदिर के अंदर एक अनोखा ही रूप नजर आता है । मंदिर के दस कमल के फूल बने हुए है और हर कमल का फूल तीन भागो में विभाजित है, और हर भाग के कमल के चौबीस पत्तों में हर पत्ते पर स्वामी की श्वेत वर्ण की मूर्ति  विराजमान है । मंदिर के अंदर सामने भगवान पार्श्वनाथ जी की खड़े अवस्था में श्यामवर्ण की आदमकद प्रतिमा विराजमान है और उनके ऊपर नाग फन छत्र के रूप में बना हुआ है । इस मंदिर के दर्शन करने के बाद हम लोग क्षेत्र तीसरे मंदिर में चल दिए । इस मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ जी की श्यामवर्ण की मूर्ति के साथ धरणेन्द्र देव व माता पद्मावती देवी के दर्शन किए।


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