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श्री दिगंबर जैन सिद्धक्षेत्र, नैनागिरि

प्राकृतिक सुषमा और आध्यात्मिक साधना का केन्द्र

 

एक नज़र में नैनागिरि: जैन तीर्थक्षेत्र

 

नैनागिरि (रेशंदगिरि) निर्वाणकाण्ड में वर्णित यह एक बुन्देलखण्ड का प्राचीनतम तीर्थ है। इस तीर्थ पर स्थित सिद्ध शिला से भगवान नेमिनाथ के काल में आचार्य श्री वर्दत्त और अन्य पांच मुनिवर तपस्वी संतों ने मोक्ष प्राप्त किया था। तीन हजार वर्ष पूर्व इस तीर्थ पर  भगवान पार्श्वनाथ का समवशरण एक बार आया था ।

 

यह क्षेत्र एक पहाड़ी पर स्थित है, इतना ऊंचा नहीं है, पर्वत पर 38, तलहटी में 16 एवं महावीर सरोवर में 2 विशाल मंदिर है। जल मंदिर एवं मानस्तंभ तथा समवसरण मंदिर बहुत सुन्दर और आकर्षक है। एक हजार वर्ष पूर्व सन् 1050 में प्रतिष्ठित प्राचीन मूर्तिया पर्वत पर विराजमान है। चौबीसी मंदिर में विराजमान भगवान पार्श्वनाथ की तदाकार मूर्ति अत्यंत ही आकर्षक एवं मनोज्ञ है। तलहटी में विशाल जिनालय है।

 

क्षेत्र से 2 किमी आगे जंगल में एक मंदिर बहुत पुराना प्रतीत होता है। इस क्षेत्र का ग्यारहवाँ मंदिर इतना प्राचीन है कि लगभग 100 वर्ष पूर्व पृथ्वी से निकला माना जाता है। मंदिर के एक शिलालेख के अनुसार, पूरा होने का वर्ष विक्रम संवत 1107 था। इस मंदिर के प्रमुख देवता भगवान पार्श्वनाथ हैं, जिनकी ऊँचाई 4 फीट 7 इंच है। इसे विक्रम संवत 2015 में स्थापित किया गया था। यहां 13 प्राचीन मूर्तियां भी स्थापित हैं, (11वीं-12वीं शताब्दी की)। भगवान पार्श्वनाथ की पहाड़ी पर पहला मंदिर (11 फीट ऊँचा) 'बड़े बाबा का मंदिर' या चौबीसी मंदिर के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर के एक मंदिर पर 5 तपस्वी संतों (गुरुदत्त और अन्य) की सफेद पत्थर से बनी खड़ी मुद्रा में मूर्तियाँ स्थापित हैं। दूसरा भगवान महावीर का मंदिर है, बहुत सुंदर, एक तालाब के बीच में स्थित है। इस मंदिर के प्रमुख देवता भगवान महावीर की मूर्ति 2 फीट ऊंची है।

 

प्रमुख दर्शन : चैबीसी मंदिर में विराजमान भगवान पार्श्वनाथ, प्राचीनतम महावीर मंदिर,  मुनिसुव्रतनाथ के पांच प्राचीन मंदिर, माता वामादेवी के साथ शिशु पार्श्वनाथ, भगवान पार्श्वनाथ और युवा पार्श्वनाथ और इस के अलावा प्रमुख दर्शनीय स्थल सिद्धशिला और आचार्य वरदत्त की तपोभूमि, वरदत्त गुफा (बड़ी), वरदत्त गुफा (छोटी), गजराज बज्रघोष, ऐरावत हाथी, संगम, गर्म और ठण्डे पानी के झरने, आदि सागर (सरकार द्वारा निर्मित विशाल सरोवर), आचार्य वरदत्त तपोवन (पर्वत के पीछे), तीर्थंकर वन (धर्मशाला के पीछे)।

 

नैनागिरि: तीर्थ वंदना

यहाँ 38 जिनालय पहाड़ी के ऊपर हैं और 16 जिनालय मैदान में सरोवर के निकट हैं। इस प्रकार यहाँ जिनालयों की संख्या 56 है। एक मंदिर सरोवर के मध्य में पावापुरी के समान बना हुआ है। इसे जल-मंदिर कहते हैं। तलहटी के मंदिर एक परकोटे के अंदर बने हुए हैं। यह क्षेत्र अपनी प्राकृतिक सुषमा के साथ आध्यात्मिक साधना का केन्द्र रहा है। इसी प्राकृतिक वैभव से आकर्षित होकर इस एकान्त निर्जन स्थान में वरदत्त आदि मुनीश्वरों ने इसे अपनी साधना-स्थली बनाया और यहाँ से मुक्ति प्राप्त करके इसे सिद्धक्षेत्र होने का गौरव प्रदान किया।

श्री दिगंबर जैन सिद्धक्षेत्र, नैनागिरि

प्राकृतिक सुषमा और आध्यात्मिक साधना का केन्द्र

 

एक नज़र में नैनागिरि: जैन तीर्थक्षेत्र

 

नैनागिरि (रेशंदगिरि) निर्वाणकाण्ड में वर्णित यह एक बुन्देलखण्ड का प्राचीनतम तीर्थ है। इस तीर्थ पर स्थित सिद्ध शिला से भगवान नेमिनाथ के काल में आचार्य श्री वर्दत्त और अन्य पांच मुनिवर तपस्वी संतों ने मोक्ष प्राप्त किया था। तीन हजार वर्ष पूर्व इस तीर्थ पर  भगवान पार्श्वनाथ का समवशरण एक बार आया था ।

 

यह क्षेत्र एक पहाड़ी पर स्थित है, इतना ऊंचा नहीं है, पर्वत पर 38, तलहटी में 16 एवं महावीर सरोवर में 2 विशाल मंदिर है। जल मंदिर एवं मानस्तंभ तथा समवसरण मंदिर बहुत सुन्दर और आकर्षक है। एक हजार वर्ष पूर्व सन् 1050 में प्रतिष्ठित प्राचीन मूर्तिया पर्वत पर विराजमान है। चौबीसी मंदिर में विराजमान भगवान पार्श्वनाथ की तदाकार मूर्ति अत्यंत ही आकर्षक एवं मनोज्ञ है। तलहटी में विशाल जिनालय है।

 

क्षेत्र से 2 किमी आगे जंगल में एक मंदिर बहुत पुराना प्रतीत होता है। इस क्षेत्र का ग्यारहवाँ मंदिर इतना प्राचीन है कि लगभग 100 वर्ष पूर्व पृथ्वी से निकला माना जाता है। मंदिर के एक शिलालेख के अनुसार, पूरा होने का वर्ष विक्रम संवत 1107 था। इस मंदिर के प्रमुख देवता भगवान पार्श्वनाथ हैं, जिनकी ऊँचाई 4 फीट 7 इंच है। इसे विक्रम संवत 2015 में स्थापित किया गया था। यहां 13 प्राचीन मूर्तियां भी स्थापित हैं, (11वीं-12वीं शताब्दी की)। भगवान पार्श्वनाथ की पहाड़ी पर पहला मंदिर (11 फीट ऊँचा) 'बड़े बाबा का मंदिर' या चौबीसी मंदिर के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर के एक मंदिर पर 5 तपस्वी संतों (गुरुदत्त और अन्य) की सफेद पत्थर से बनी खड़ी मुद्रा में मूर्तियाँ स्थापित हैं। दूसरा भगवान महावीर का मंदिर है, बहुत सुंदर, एक तालाब के बीच में स्थित है। इस मंदिर के प्रमुख देवता भगवान महावीर की मूर्ति 2 फीट ऊंची है।

 

प्रमुख दर्शन : चैबीसी मंदिर में विराजमान भगवान पार्श्वनाथ, प्राचीनतम महावीर मंदिर,  मुनिसुव्रतनाथ के पांच प्राचीन मंदिर, माता वामादेवी के साथ शिशु पार्श्वनाथ, भगवान पार्श्वनाथ और युवा पार्श्वनाथ और इस के अलावा प्रमुख दर्शनीय स्थल सिद्धशिला और आचार्य वरदत्त की तपोभूमि, वरदत्त गुफा (बड़ी), वरदत्त गुफा (छोटी), गजराज बज्रघोष, ऐरावत हाथी, संगम, गर्म और ठण्डे पानी के झरने, आदि सागर (सरकार द्वारा निर्मित विशाल सरोवर), आचार्य वरदत्त तपोवन (पर्वत के पीछे), तीर्थंकर वन (धर्मशाला के पीछे)।

 

नैनागिरि: तीर्थ वंदना

यहाँ 38 जिनालय पहाड़ी के ऊपर हैं और 16 जिनालय मैदान में सरोवर के निकट हैं। इस प्रकार यहाँ जिनालयों की संख्या 56 है। एक मंदिर सरोवर के मध्य में पावापुरी के समान बना हुआ है। इसे जल-मंदिर कहते हैं। तलहटी के मंदिर एक परकोटे के अंदर बने हुए हैं। यह क्षेत्र अपनी प्राकृतिक सुषमा के साथ आध्यात्मिक साधना का केन्द्र रहा है। इसी प्राकृतिक वैभव से आकर्षित होकर इस एकान्त निर्जन स्थान में वरदत्त आदि मुनीश्वरों ने इसे अपनी साधना-स्थली बनाया और यहाँ से मुक्ति प्राप्त करके इसे सिद्धक्षेत्र होने का गौरव प्रदान किया।


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