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जयपुर रियासत काल की राजधानी रहे ढूंढाड़ क्षेत्र ( वर्तमान दौसा) में प्रारम्भ से ही जैन धर्म की प्रभावना रही है। इस मंदिर का प्रथम जीर्णोद्धार विक्रम संवत 1622 (लगभग 450 वर्ष पूर्व) हुआ था। यह प्रशस्ति आज भी मूल वेदी के पीछे अंकित है।

वर्तमान मंदिर में एक मूल वेदी, आठ अन्य वेदी तथा एक पद्मावती माता की वेदी व एक क्षेत्रपाल बाबा की बारी स्थित है जिनमे छोटी बड़ी कुल 78 प्राचीन प्रतिमाए विराजित होनी है।  मंदिरजी में मार्बल पत्थर से फर्श निर्माण का कार्य चल रहा है। मंदिरजी में रंग रोगन , स्टील रेलिंग, पुरानी दीवारों की मरम्मत, पुट्टी व POP का कार्य , रंगीन एवं स्वर्ण चित्रकारी होना शेष है, इसके बाद मुनि श्री 108 उर्ज्यन्त सागर जी महाराज के पावन सानिध्य में वेदी प्रतिष्ठा समारोह होना प्रस्तावित है। 
 

 

जयपुर रियासत काल की राजधानी रहे ढूंढाड़ क्षेत्र ( वर्तमान दौसा) में प्रारम्भ से ही जैन धर्म की प्रभावना रही है। इस मंदिर का प्रथम जीर्णोद्धार विक्रम संवत 1622 (लगभग 450 वर्ष पूर्व) हुआ था। यह प्रशस्ति आज भी मूल वेदी के पीछे अंकित है।

वर्तमान मंदिर में एक मूल वेदी, आठ अन्य वेदी तथा एक पद्मावती माता की वेदी व एक क्षेत्रपाल बाबा की बारी स्थित है जिनमे छोटी बड़ी कुल 78 प्राचीन प्रतिमाए विराजित होनी है।  मंदिरजी में मार्बल पत्थर से फर्श निर्माण का कार्य चल रहा है। मंदिरजी में रंग रोगन , स्टील रेलिंग, पुरानी दीवारों की मरम्मत, पुट्टी व POP का कार्य , रंगीन एवं स्वर्ण चित्रकारी होना शेष है, इसके बाद मुनि श्री 108 उर्ज्यन्त सागर जी महाराज के पावन सानिध्य में वेदी प्रतिष्ठा समारोह होना प्रस्तावित है। 
 


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