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!!श्री संभवनाथ भगवान जिनालय- कराड!!
ईतिहास के झरोखों मे कराड शहर
कृष्णा और कोयना नदी के किनारे ईस्वी सन के पहेले बसा हुआ कराड शहर का ऐतिहासिक नाम करहाटनगर है जो अनोखे प्रकार की हरियाली से सुशोभित मनमोहक समृद्धिशाळी नगर है ।
इस शहर की धार्मिक प्रवृत्तियों के कारण से यहाँ पर अनेक धर्मों के – संतो – महंतो का आगमन और विचरण होता रहता था ।एक समय मे यहाँ बौद्वधर्म का प्रचार और बौद्ध समाज की आबादी भी बहुत थी । आगासीया के डुंगर उपर बौद्धो की गुफाऐ वर्तमान मे भी विद्यमान है ।
मैसूर नजदीक दिगंबर संप्रदाय के सुप्रसिद्ध तीर्थ के रूप मे प्रसिद्ध श्रवण बेलगोल मे एक स्तंभ के उपर आज भी एक शिलालेख मोजुद है । जिसमें लिखा है कि दिगम्बर समंतभट्ट जैनाचार्य वाद करने हेतु आऐ थे ।संस्कृत भाषा के इस शिलालेख मे "प्राप्तोडहं करहाटकं बहुं मटं" ऐसा उल्लेख है ।यह पढ़ने से उस समय मे इस नगर मे विद्वानो और अनेक शूरवीरो से शोभायमान थी ।
श्री श्वेतांबर मूर्ति पूजक जैन समाज की आबादी भी यहाँ पर थी और उन्होंने सर्व प्रथम वर्तमान मे धर्मशाळा के तौर पर प्रसिद्ध जगह पर श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ के घर देरासर के निर्माण करने का उल्लेख प्राचीन एक स्तवन मे प्राप्त होता है।संवत १९६२ के समय मे यहाँ पर केवल आठ ही घर थे जो इस प्रकार से है -
१) श्री. मोतिचंद जयचंद शाह
२) श्री. राजाराम मगनचंद मेहता,
३) श्री. हाथीभाई मलुकचंद शाह,
४) श्री. घेलाभाई मलुकचंद शाह,
५) श्री. कंकुचंद गुलाबचंद व्होरा
६) श्री. रवचंद मोतीचंद
७) श्री. जिवाभाई बापूभाई शाह
८) श्री. कस्तुरचंद
इन आठों घरो की धर्मभावना श्रेष्ठ होने से उन्होंने शिखरबंधी मंदिर के निर्माण करवाने की भावना हुयी।मूळ आगलोड के निवासी शेठ श्री हाथीभाई मलुकचंद ने नूतन शिखरबंध जिनमंदिर निर्माण के लिए रूपये २५ हजार का दान की जाहेरात की और उस समय मे कराड मे बिराजमान यति श्री केसरीचंद महाराज के पास खननमुहूर्त लेकर कार्य का प्रारंभ किया ।धर्मशाळा और मंदिर के लिए जगह बिना किमंत के शेठ श्री परमचंदभाइ ने संघ को अर्पण की थी। मंदिर के कार्य की पूर्णाहूति हो उसके पहेले ही श्रीमान हाथीभाइ का स्वर्गवास हो गया ।मंदिर का कार्य रूक गया ।दो तीन वर्षो के पश्चात उनकी धर्मपत्नी जीवीबेन ने उस समय के अग्रणी शा. मोतीचंद जयचंद की देखरेख के नीचे मंदिर का कार्य पूर्ण करवाया ।अपने स्वयं की राशि के अनुकूळ श्री संभवनाथ भगवान लाने का कार्य मोतीभाई को सोपा गया ।श्री मोतीभाई अहमदाबाद गये ।३०० रूपयों का नकरा देकर वि.स.१६८२ की साल मे शेठ श्री शांतिलाल झवेरी ने अपने मातुश्री अरिबाई के स्मरणार्थे निर्मित श्री संभवनाथ भगवान की प्रतिमा रतनपोळ के देरासर से लाकर वि.सं.१९६२ फागण सुद-१ को कराड नगर मे भव्य प्रवेश करवाया ।
श्री संभवनाथ भगवाननी की प्रतिमा का पहेले का इतीहास ..
वि. सं. १९६२ वैशाख सुद-६ सोमवार के शुभमुहूर्ते मे सुबह ९-१५ बजे श्री संभवनाथ भगवान की बहुत ही धामधुम से दत्तक बालकुमार हीराचंद के शुभहस्तक प्रतिष्ठा करवाने मे आयी ।
इस प्रतिष्ठा के समय अनेक विघ्नो का सामना करना पड़ा था। जैनेतर समुदाय ने “यह नागदेव को हम बैठने नही देंगे ।”इस प्रकार की प्रतिज्ञा कर जैनो के साथ संपूर्ण व्यवहार बंध कर दिया था।नदी से पानी लाने के लिए भी मज़दूर मिल नही पाते थे ।इस प्रकार की हालात मे पुलिस बंदोबस्त के साथ पुलिसबेन्ड बुलाकर धामधुम से प्रतिष्ठा करवायी थी ।
प्रतिष्ठा शुभमुहूर्ते मे होने के पश्चात जैन समाज के घरो की संख्या बढ़ने लगी ।मात्र ८ घरो मे से बढ़ते बढ़ते गुजराती-कच्छी राजस्थानी समाज की आबादी भी व्यवस्याय हेतु आने लगी ।यहाँ आने के बाद व्यापार धंधे मे भी सुखी और समृद्ध बने ।साथ साथ मे धर्म मे भी भावनाशील बने आजे लगभग ७५० से अधिक जैनो के घर है ।
कराड की आज की दिखती कायापलट मे मुख्य हिस्सा जो किसी महापुरूष का है तो उसका श्रेय व्याख्यानवाचस्पति पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी महाराजा को जाता है । जिन्होंने इस दक्षिणप्रदेश मे सर्व प्रथम पगले किये थे ।कराड से श्री कुंभोजगीरी तीर्थ का सर्व प्रथम संघ निकाला।वि.सं.१९९४ मे कराड मे चातुर्मास कर ,साधु-साध्वीजीओ के लिए यह विहारमार्ग खुल्ला किया।विहारमार्ग सुलभ बनाया ।तत्पश्चात पू. आचार्यदेव श्रीमद् विजय लब्धिसूरीश्वरजी महाराजा आदि अनेक महापुरूषो मे चातुर्मास कर इस भूमि को पावन किया। उसके बाद वि. सं. २०२१ की साल मे श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ आदि जिनबिम्बो की प्रतिष्ठा (पू. मु. श्री रंजनविजयजी म.सा.) पू. आचार्यदेव श्रीमद् विजयरत्नशेखरसूरीश्वरजी महराजा की शुभ निश्रा मे हुयी ।
आज भी शा. हाथीभाइ मलुकचंद के वंशज पौत्र नगरशेठ श्री प्रभुलाल हिरालाल गुजराती समाज के आगेवान रहे थे । जिनका स्वर्गवास संवत् २०५८ मे हुआ था। वैशाख सुद-६ के दिन ध्वजारोहण विधि (वंशवारसागत) उन्हीं के पर पौत्र परिवार के सदस्यों श्री राहुल हेमंत शाह ,श्री पुष्कर दिलीप शाह , श्री सुमीत वल्लभ शाह के हस्तक होती है ।
शेठ श्री हाथीभाइ मलुकचंद द्वारा निर्मित श्री संभवनाथ जिनालय वर्तमान मे श्री संध द्वारा जीर्णोद्धार कर के पांच गंभारे – त्रण शिखर – ४४ खम्भों के साथ ५० फूट की लंबाई वाला बनकर तैयार होने के बाद उसमें सुविशालगच्छाधिपति पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजय महोदयसूरीश्वरजी महाराजा की आज्ञा से सिंहगर्जना के स्वामी स्व. पू. आचार्यदेव श्रीमद विजय मुक्तिचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा के पट्टालंकार पू. आचार्यदेव श्रीमद् विजय जयकुंजरसूरीश्वरजी महाराजा तथा पू. आ. श्री विजय मुक्तिप्रभसूरीश्वरजी महाराज वैसे ही पू. मुनिप्रवर श्री श्रेयांसप्रभविजयजी गणिवर ( वर्तमान मे आचार्य ) आदि मुनि भगवंतो की शुभनिश्रा मैं नूतन जिनबिंबो की अंजनशलाका विधि पूर्वक वि.सं.२०५१ मागसर सुद ५ के शुभ दिन परमात्माओ की प्रतिष्ठा विधि हुयी थी ।प पू व्याख्यानवाचस्पति पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी महाराजा का बहुत ही सुंदर गुरू मंदीर की स्थापना की गयी है । उनके जीवन प्रसंगों की चित्र बहुत ही सुंदर है।
शताब्दी महोत्सव - संवत १९६२-२०६२
कराड नगर मे श्री संभवनाथ देरासर के १०० वर्ष पूर्ण होने पर शताब्दी महोत्सव बहुत ही हर्षोल्लास के साथ परम पूज्य महाराष्ट्रसंघोपकारी वात्सल्यवारिधि पू.आ.म.श्रीमद् विजय महाबलसूरीश्वरजी महाराजा की आज्ञा और आशिर्वाद से आप श्री के पट्टालंकर महाराष्ट्रसंघ सन्मार्गदर्शक प्रवचनप्रदीप पू आ.म. श्रीमद् विजय पुण्यपाल सूरीश्वरजी महाराजा के स्वर्णिम सान्निध्य तथा पूज्य श्री के शिष्यरत्न पूपन्यासप्रवर श्री सुवन भूषण विजयजी गणिवर्य पू पंन्यासप्रवर श्री वज्र भूषण विजय जी गणिवर्य आदि श्रमण श्रमणी समुदाय की उपस्थिती मे अपूर्व भाव उल्लास के साथ मे संपन्न हुआ था ।
केसर की अमीवर्षा -
कराड श्री संघ मे शताब्दी महोत्सव के प्रसंग के दिन श्री संभवनाथ भगवान की प्रतिमाजी के दाएँ अंगुठे मे से केसर की अमीझरणा हुयी थी ।वर्तमान मे भी वहाँ पर भगवान की प्रतिमा के उस भाग मे केशर के चिन्ह है ।इसलिए मूळनायक भगवान को श्री अमीझरा संभवनाथ भगवान के नाम से पहचाने जाने लगे है ।
वर्तमान मा कराड नगर मा आ देरासर ना साथे बीजा त्रण शिखर बंध देरासरो अने चार धर देरासर है
१ श्री संभवनाथ जिनालय
२ श्री सुमतिनाथ जिनालय
३ श्री अभिनंदन जिनालय
४ श्री नमिनाथ जिनालय
घर देरासर- ४
१ संभवनाथ
२ पद्म प्रभु
३ सुविधीनाथ
४ पार्श्वनाथ
fmd_good Shree Sambhavnath Maharaj Trust, 56, Ravivar Peth, Dist.: Satara, Karad, Maharashtra, 415110
account_balance Shwetamber Temple