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प्राचीन विदेह देश में, स्थित मिथिलापुरी 19वे तीर्थंकर मल्लिनाथ और 21वे तीर्थंकर नमिनाथ जी की जन्मभूमि है | यहाँ इन दोनों तीर्थंकरो के गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक हुए है | इस प्रकार आठ कल्याणको की भूमि होने के कारण यह स्थान हजारो वर्षों से तीर्थक्षेत्र रहा है |

दोनों तीर्थंकरो के इन कल्याणको के सम्बन्ध में प्राचीन साहित्य में विस्तृत उल्लेख मिलते है|

पौराणिक घटनाये:

जैन पुराण साहित्य और कथा ग्रंथो में मिथिलापुरी और उससे सम्बंधित अनेक व्यक्तियों और घटनाओ का वर्णन मिलता है | जिससे ज्ञात होता है, मिथिलापुरी एक सांस्कृतिक नगरी थी | ये घटनाये इस नगरी का सही मूल्याङ्कन करने में हमे बड़ी सहायता देती है |

"हरिवंशपुराण" में उल्लेख है कि जब बलि आदि चार मंत्रियों ने राजा पदम् से सात दिन का राज्य पाकर हस्तिनापुर में पधारे हुए आचार्य अकम्पन और उनके सात सौ मुनियों के संघ पर घोर अमानुषिक उपसर्ग किये, उस समय मुनि विष्णुकुमार के गुरु मिथिला में ही विराजमान थे और उन्होंने श्रवण नक्षत्र को कम्पित देखकर दिव्यज्ञान से जान लिया था कि मुनिसंघ पर भयानक उपसर्गः हो रहा है, यह बात उनके मुख से अचानक ही निकल गयी तब पास हि बैठे क्षुल्लक पुष्पदंत ने सुन लिया | उन्होंने अपने गुरु से पूछकर उनकी आज्ञा लेकर वह धरतीभूषण पर्वत पर मुनि विष्णुकुमार के पास गए थे | वहां जाकर उन्होंने मुनि विष्णु कुमार को सारी घटना बता दी, तब मुनि विष्णुकुमार अपनी विक्रिया रिद्धि से हस्तिनागपुर पहुंचे और वामन का रूप बनाकर बलि से तीन पग भूमि मांगी | तब बलि ने तीन पग धरती के दान का संकल्प किया | तब विक्रिया से विशाल आकार बनाकर मुनि विष्णुकुमार ने दो पगो में ही सुमेरु पर्वत से मानुषोत्तर पर्वत कि भूमि को नाप दिया | अभी एक पग लेना शेष था | भय के कारण बलि आदि मंत्री थर थर कांपने लगे, वे पैरों में गिरकर बार बार क्षमा मांगने लगे और मुनियो का उपसर्ग दूर हुआ |

मिथिलापुरी की प्रसिद्धि भगवान् मल्लिनाथ और भगवान् नमिनाथ के कारण हुई थी | पश्चात इसी नगरी में राजा जनक हुए, जिनकी पुत्री सीता थी | उनका विवाह रामचंद्र जी से हुआ था |

आजकल प्राचीन मिथिला की पहचान के लिए कोई चिन्ह नहीं मिलता | किन्तु प्राचीन साहित्य से बहुत जानकारी प्राप्त होती है |

क्षेत्र की अवस्थिति:

यह अत्यंत दुःख की बात है, कि आज मिथिला क्षेत्र का अस्तित्व भी लुप्त हो चूका है | कहते है, जनकपुर प्राचीन मिथिला कि राजधानी का दुर्ग है | पुरनैलिया से ५ मील सिगराओ स्थान है | यहाँ पर प्राचीन मिथिला के चिन्ह मिलते रहते है |

मिथिलाधाम की पुनर्स्थापना के अंतर्गत यहाँ हाल ही में चरण चिन्ह स्थापित किये गए है व मंदिर निर्माणाधीन है जिसमें विराजमान होगी ग्यारह - ग्यारह फुट की भगवान श्री आदिनाथ स्वामी, भगवान श्री मल्लिनाथ स्वामी और भगवान श्री नमिनाथ स्वामी जी की भव्य जिनप्रतिमायें|

प्राचीन विदेह देश में, स्थित मिथिलापुरी 19वे तीर्थंकर मल्लिनाथ और 21वे तीर्थंकर नमिनाथ जी की जन्मभूमि है | यहाँ इन दोनों तीर्थंकरो के गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक हुए है | इस प्रकार आठ कल्याणको की भूमि होने के कारण यह स्थान हजारो वर्षों से तीर्थक्षेत्र रहा है |

दोनों तीर्थंकरो के इन कल्याणको के सम्बन्ध में प्राचीन साहित्य में विस्तृत उल्लेख मिलते है|

पौराणिक घटनाये:

जैन पुराण साहित्य और कथा ग्रंथो में मिथिलापुरी और उससे सम्बंधित अनेक व्यक्तियों और घटनाओ का वर्णन मिलता है | जिससे ज्ञात होता है, मिथिलापुरी एक सांस्कृतिक नगरी थी | ये घटनाये इस नगरी का सही मूल्याङ्कन करने में हमे बड़ी सहायता देती है |

"हरिवंशपुराण" में उल्लेख है कि जब बलि आदि चार मंत्रियों ने राजा पदम् से सात दिन का राज्य पाकर हस्तिनापुर में पधारे हुए आचार्य अकम्पन और उनके सात सौ मुनियों के संघ पर घोर अमानुषिक उपसर्ग किये, उस समय मुनि विष्णुकुमार के गुरु मिथिला में ही विराजमान थे और उन्होंने श्रवण नक्षत्र को कम्पित देखकर दिव्यज्ञान से जान लिया था कि मुनिसंघ पर भयानक उपसर्गः हो रहा है, यह बात उनके मुख से अचानक ही निकल गयी तब पास हि बैठे क्षुल्लक पुष्पदंत ने सुन लिया | उन्होंने अपने गुरु से पूछकर उनकी आज्ञा लेकर वह धरतीभूषण पर्वत पर मुनि विष्णुकुमार के पास गए थे | वहां जाकर उन्होंने मुनि विष्णु कुमार को सारी घटना बता दी, तब मुनि विष्णुकुमार अपनी विक्रिया रिद्धि से हस्तिनागपुर पहुंचे और वामन का रूप बनाकर बलि से तीन पग भूमि मांगी | तब बलि ने तीन पग धरती के दान का संकल्प किया | तब विक्रिया से विशाल आकार बनाकर मुनि विष्णुकुमार ने दो पगो में ही सुमेरु पर्वत से मानुषोत्तर पर्वत कि भूमि को नाप दिया | अभी एक पग लेना शेष था | भय के कारण बलि आदि मंत्री थर थर कांपने लगे, वे पैरों में गिरकर बार बार क्षमा मांगने लगे और मुनियो का उपसर्ग दूर हुआ |

मिथिलापुरी की प्रसिद्धि भगवान् मल्लिनाथ और भगवान् नमिनाथ के कारण हुई थी | पश्चात इसी नगरी में राजा जनक हुए, जिनकी पुत्री सीता थी | उनका विवाह रामचंद्र जी से हुआ था |

आजकल प्राचीन मिथिला की पहचान के लिए कोई चिन्ह नहीं मिलता | किन्तु प्राचीन साहित्य से बहुत जानकारी प्राप्त होती है |

क्षेत्र की अवस्थिति:

यह अत्यंत दुःख की बात है, कि आज मिथिला क्षेत्र का अस्तित्व भी लुप्त हो चूका है | कहते है, जनकपुर प्राचीन मिथिला कि राजधानी का दुर्ग है | पुरनैलिया से ५ मील सिगराओ स्थान है | यहाँ पर प्राचीन मिथिला के चिन्ह मिलते रहते है |

मिथिलाधाम की पुनर्स्थापना के अंतर्गत यहाँ हाल ही में चरण चिन्ह स्थापित किये गए है व मंदिर निर्माणाधीन है जिसमें विराजमान होगी ग्यारह - ग्यारह फुट की भगवान श्री आदिनाथ स्वामी, भगवान श्री मल्लिनाथ स्वामी और भगवान श्री नमिनाथ स्वामी जी की भव्य जिनप्रतिमायें|


fmd_good मिथिला धाम, मल्लीवाड़ा, Balmikshewar Mod, सुरसंड - जनकपुर रोड, Sitamarhi, Bihar, 843324

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