नैनागिरि तीर्थ की महिमा

★★ पौराणिक एवं धार्मिक ग्रन्थों में रेशन्दिगिरि (ऋषीन्द्रगिरि) के नाम से उल्लेखित नैनागिरि तीर्थ शाश्वत एवं प्राचीनतम तीर्थ है। भगवान नेमिनाथ के काल में नैनागिरि से मोक्ष पधारे आचार्य वरदत्त और उनके साथी मुनिराजों तथा भगवान पार्श्वनाथ की चरण रज से अपने मस्तक को पवित्र करें। महावीर सरोवर के सुगंधित जलकणों से अपने नेत्रों को पवित्र करें। चालीस हजार साल पुराने शैल चित्रों से सुशोभित सिद्धशिला के दर्शन करें। नैनागिरि के इतिहास, संस्कृति, परंपरा और धरोहर का अध्ययन करें। ★★

 

◆◆ डाॅ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के वरिष्ठ प्राध्यापकों द्वारा सेमरा- पठार (बेबस) नदी के उत्तरी तट पर स्थित सिद्धशिला के शिखर पर स्थित गुफा में निर्मित शैल भित्ति चित्रों का 2 फरवरी, 2014 को निरीक्षण कर घोषित किया है कि सभी शैल चित्र ईसा पूर्व 40 हजार वर्ष से भी अधिक प्राचीन है। ◆◆

 

★★ पर्वत पर भगवान महावीर जिनालय की दीवार पर रचित प्राचीनतम शिलालेख चैत्र शुक्ल अष्टमी विक्रम संवत 1107 (8 अप्रैल सोमवार सन् 1050 शक 972) का अवलोकन करें। नैनागिरि के पर्वत पर भगवान पाश्र्वनाथ का प्राचीनतम मंदिर (मंदिर क्र. 37) स्थित है। ऊॅचे टीले की खुदाई करने पर यह शिलालेख और मंदिर के भूगर्भ से 13 प्राचीनतम प्रतिमाएं प्राप्त हुई है, जिन्हें इसी मंदिर और संग्रहालय में स्थापित किया गया है। ★★

 

◆◆ नैनागिरि से भगवान नेमीनाथ के काल में मोक्ष पधारें आचार्य वरदत्तादि पांच मुनीश्वरों और तीन हजार वर्ष पूर्व नैनागिरि में आयोजित समवशरण में विराजमान रहें भगवान पार्श्वनाथ की पगतलियों से पवित्र सिद्धभूमि के दर्शन करें । ◆◆

 

★★ देश के सभी आचार्यो एवं मुनियों की श्रद्धास्थली आचार्य शांतिसागर, आचार्य देषभूषण, आचार्य विमलसागर, आचार्य विद्यासागर, आचार्य सन्मतिसागर आचार्य देवनंदी, आचार्य ज्ञानसागर, गणधराचार्य विरागसागर, आचार्य विशुद्धसागर एवं आचार्य सुनीलसागर आदि सभी आचार्याे एवं मुनिराजों की श्रद्धास्थली के दर्शन करें। ★★

 

◆◆ आचार्य विद्यासागर जी द्वारा वर्ष 1977 से 1987 के दशक में नैनागिरि में 72 साधुओं/आर्यिकाओं को दीक्षा प्रदान की गई। इस महान दीक्षाभूमि में वर्ष 1978 में आचार्य श्री ने नैनागिरि तीर्थ पर भयंकर ज्वर और सशस्त्र डाकुओं के उपसर्ग पर विजय प्राप्त की। साथ चलने वाले सर्प को संबोधित किया। नैनागिरि के आध्यात्मिक क्षितिज पर जन्मे आचार्य पुष्पदंत सागर, उपाध्याय गुप्तिसागर, मुनिवर क्षमासागर एवं ईशुरवारा तीर्थउद्धारक मुनि सुधासागर जैसे संतो और पूज्य दृढ़मति एवं गुणमति जैसी आर्यिका माताओं की दीक्षाभूमि के दर्शन करें। ◆◆

 

★★ पारस समवशरण क्षेत्र में जन्में पूज्य आदिसागर जी महाराज की प्रेरणा से वर्ष 1950 से 1955 के बीच निर्मित भगवान पार्श्वनाथ चैबीसी मंदिर के दर्शन करें। आचार्य विद्यासागर जी महाराज नैनागिरि में तीन चातुर्मास और चार शीतयोग कर कुल 30 माह विराजमान रहें, उन की प्रेरणा से वर्ष 1981 से 1986 के बीच निर्मित समवसरण मंदिर के दर्शन करें। ★★

 

◆◆नैनागिरि (नैनागढ़) आल्हा की ससुराल वीरगाथा काल (सम्वत् 1050 से 1375 तक) में नैनागढ़ के गोंड राजा इन्द्ररमन की बहिन सोना रानी अनुपम सुन्दरी थी। सोनारानी जब जवान हुई तो उसके पिता श्री सोमदेव ने उसकी शादी के लिए एक शर्त रखी कि जो वीर शेर से लड़ने की क्षमता रखता है उससे ही सोना रानी का विवाह किया जाएगा। आल्हा और उदल महोबा चंदेल राजा परमरद (राजा परमाल) के महान पराकमी राजकुमारी (सेनानी) - आस्कलैला ये बनाफर क्षत्रिय थे। अनुज ऊदल की इच्छा थी कि आल्हा का विवाह सोना रानी से हो। अतः ऊदल ने अपने बड़े भाई आल्हा को सोनाणी से विवाह करने की सलाह दी। आल्हा ने कहा कि नैनागढ़ का राजा बहुत ही बलशाली है और उसके पास अस्त्र - शस्त्र भी बहुत है। उसने सोने से शादी करने की इच्छा से आये 52 वीरवरों को बंदी बना लिया है। अतः आल्हा ने विषम परिस्थितियों को भांप कर मनाया कर दिया, किन्तु ऊदल हतोत्साहित नहीं हुआ। ऊदल ने नैनागढ़ के राजा इन्द्रमनन पर हमला बोल दिया और घमासान युद्ध कर सोने की जीतकर ले गया। तत्पश्चात आल्हा के साथ सोना रानी का विवाह सम्पन्न हुआ। ◆◆

 

★★ नैनागिरि का मेला : नैनागिरि मैं गत ३०० वर्षो से अगहन कृष्णा त्रियोदशी से पूर्णिमा तक मेला भरता है समीपस्थ ग्रामो के निवासी इस अवसर पर आयोजित पार्श्वनाथ रथ यात्रा में भाग लेते है और भगवान का अभिषेक करते है , मेला मैं ग्रामीण शिल्पियों द्वारा निर्मित वस्तुओ का बड़ी मात्रा मैं क्रय - विक्रय होता है । ★★

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