सैर-सपाटा(सरोवर/नदी/झरने )
तीर्थंकर वन
महावीर तालाब के दक्षिणी ओर पर्वत की उत्तरी ढलान में तीर्थंकर वन विकसित किया जा रहा है। यहां पर २४ तीर्थंकरों के दीक्षा वृक्ष विकसित किए जा रहे है।यह वन अनूठे प्रकार का है। इस वन में स्वस्तिक के आकर में २४ तीर्थंकर वृक्षों को लगाया गया है। तीर्थंकर वन में यात्रियों को विश्राम हेतू सुविधाएं भी विकसित की जावेगी। हरी घास एवम् फूलों के वृक्षों को भी लगाया जावेगा। यहां बैठकर महावीर सरोवर, जल मंदिर एवम् समवसरण मंदिर की खूबसूरती को निहारा जा सकता है।
महावीर सरोवर
यहां निर्मित तालाब चंदेल वंश के राजाओं द्वारा अनेक वर्ष पूर्व निर्मित कराया गया है। यह पवित्र महावीर तालाब है।इसमें मछली मारने पर पन्ना महाराज द्वारा प्रतिबंध लगाया गया है,। इस वाबत तालाब के किनारे एक पत्थर पर सूचना लिखी हुई है। यह तालाब १४ एकड़ में फैला हुआ है। इस तालाब में प्रातः काल में हजारों की संख्या में लाल कमल एवम् श्वेत कमल खिलते है। प्रातः काल में तालाब बहुत ही खूब सूरत लगता है। इसी तालाब में भव्य एवम् आकर्षक जल मंदिर एवम् में स्तंभ निर्मित है। तालाब में इस दृश्य का प्रतिबिंब देखने लायक रहता है।
गजराज बज्रघोष
नैनागिरि मे ंस्थित अपनी तपोभूमि में भगवान पार्श्वनाथ द्वितीय भवधारी में गजराज बज्रघोष ने विभिन्न व्रतो का पालन करते हुए भीषणतम तपश्चरण किया। नैनागिरि के गहन एवं विस्तृृत वरदत्त वन मे ंस्थित सेमरा पठार नदी में गजराज बज्रघोष की प्राकृतिक, अकृत्रिम और जीवतं विशाल प्रतिमा भगवान पाश्र्वनाथ के द्वितीय भव के अप्रतिम स्मारक के रूप में स्थित है। लाखों वर्षो से उनका यह स्वरूप आज भी नैनागिरि मे ंविशाल गजेन्द्र के रूप में विद्यमान है, जो प्रत्येक यात्री, दर्शक और पर्यटक को मंत्रमुग्ध कर देता है। सभी महावत यहाॅ आकर आचार्य मानतुंग विरचित भक्तामर स्तोत्र के 38 वंे श्लोक का 9 बार मौखिक रूप से पाठ करते है। उन्मत्त हाथी के भय का भंजन करते है और उनसे अपनी सुरक्षा का अनुष्ठान करते है प्रत्येक महावत समीपस्थ जलकुण्ड में स्वयं स्नान करता है। अपने हाथी को स्नान कराता है। गजराज बज्रघोष की आराधना करता है और अपन ेलक्ष्य की ओर प्रस्थान करता है।