About g_translate Show Original
•भारत सरकार द्वारा पंजीकृत क्र. 080300MH2021NPL369101
भारत को 'भारत'
मैं भारत हूँ फाउंडेशन भारतीय संस्कृति की ओर अग्रसर
माननीय
विषय : संविधान में से 'इंडिया' शब्द का विलोप कर सिर्फ 'भारत' रखे जाने हेतु याचिका
सदर्भ : ११+१० = २१ का
आपका महामहिम,
•प्रार्थी की ओर से याचिका निम्न प्रकार प्रस्तुत है:
१. यह कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दिल्ली निवासी युवक 'नमह' की ओर से Writ Petition प्रस्तुत की गई थी (क्र: WPCIVIL/422/2020) में यह निराकरण चाहा गया था कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३२ के अंतर्गत संविधान में संसोधन कर India शब्द हटाकर सिर्फ 'भारत' रखा जाए। जिसकी प्रति संलग्न Annexure १ हैं।
यह कि याचिका की सुनवाई ३ सदस्यी खंडपीठ जिसमें न्यायमूर्ति मुख्य न्यायाधिपति एस. ए. बोबडे, न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति ऋषिकेश की खंडपीठ के समक्ष हुई। दिनांक ३ जून २०२० के अपने आदेश में न्यायालय में प्रार्थी अधिवक्ता की प्रार्थना को स्वीकार करते हुए याचिका को प्रतिवेदन मानकर भारत सरकार से संबंधित मंत्रालय से उचित कार्यवाही हेतु भेज दें। प्रतिलिपि आदेश Annexure २ है।
यह कि आपकी सेवा में और भारत सरकार संबंधित मंत्रालय:
१. गृह मंत्रालय
२. गृह विधायी विभाग कानून और न्याय मंत्रालय ३. संसदीय कार्य मंत्रालय
४. कानूनी मामला विभाग की ओर सर्वोच्च न्याय के आदेश के प्रकाश में यह याचिका प्रस्तुत है। यह कि 'इंडिया अर्थात भारत राज्यों का संघ होगा' के स्थान पर सिर्फ 'भारत राज्यों का
संघ' होगा। इस प्रकार संविधान में संसोधन के लिए अतीत की पृष्ठभूमि संस्कृति, इतिहास, देश की गौरवशाली परंपरा के अनुसार तथ्य निम्न प्रकार प्रस्तुत हैं :
भारतीय संस्कृति की और असर क देश के नाम की आवश्यकता: यह एक निर्विवाद सत्य है कि किसी देश का नाम उसके अतीत की पृष्ठ भूमि पर ही नामांकित किया जाता है जो उसकी संस्कृति, इतिहास, गौरवशाली परम्परा को प्रतिलक्षित करता है। 'भारत' नाम प्राचीन काल से निर्विवाद रूप से जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के यशस्वी पुत्र 'भरत' के नाम से प्रचलित होकर संविधान लागू होने के पश्चात अब तक देश के प्रत्येक नागरिक के हृदय में बसा हुआ है। ख 'भारत' नाम की अकाट्य प्रमाणिकता ॠग्वेद काल के चक्रवर्ती सम्राट 'भरत' के समय से मिलती है, इसके अतिरिक्ति इसका उल्लेख भगवत (मत्स्य पुराण), वैदिक (ऋग्वेद), बौद्ध और जैन पुराणों एवं ग्रन्थ महाभारत आदि में मित्रता है इण्डिया नाम की उत्पत्ति सिन्धु नदी के अंग्रेजी नाम इण्डस से हुई है। अंग्रेजों ने भारत को अंग्रेजी में 'इण्डिया'
गौरवशाली परम्परा को प्रतिलक्षित करता है। 'भारत' नाम प्राचीन काल से निर्विवाद रूप से जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के यशस्वी पुत्र 'भरत' के नाम से प्रचलित होकर संविधान लागू होने के पश्चात अब तक देश के प्रत्येक नागरिक के हृदय में बसा हुआ है। ख 'भारत' नाम की अकाट्य प्रमाणिकता ॠग्वेद काल के चक्रवर्ती सम्राट 'भरत' के समय से मिलती है, इसके अतिरिक्ति इसका उल्लेख भगवत (मत्स्य पुराण), वैदिक (ऋग्वेद), बौद्ध और जैन पुराणों एवं ग्रन्थ महाभारत आदि में मित्रता है इण्डिया नाम की उत्पत्ति सिन्धु नदी के अंग्रेजी नाम इण्डस से हुई है। अंग्रेजों ने भारत को अंग्रेजी में 'इण्डिया' नाम दिया है, जो १६वीं सदी की घटना है जब अंग्रेज 'भारत' की सम्पत्ति को लूटने के उद्देश्य से आये थे उन्होंने देखा 'भारत' में नाम के आधार पर ही व्यक्ति की जाति, उसका धर्म, उसका प्रदेश और खानपान के बारे में अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है इसलिए उन्होंने 'भारत' नाम को ही बदल 'इंडिया' करने की साजीश रची। भारत नाम 'प्रोपर नाउन' है, इसका अनुवाद नहीं हो सकता। 'इण्डिया' नाम की न तो कोई सभ्यता है और न कोई गौरवशाली परम्परा है।
संविधान की उद्देशिका में 'हम लोगों' का उल्लेख वे भारतीय है न कि 'इण्डियन'। यह देश का दुर्भाग्य था कि संविधान की मूल प्रति अंग्रेजी में है और अनुवाद हिन्दी में, जबकि संविधान भारत का भारत के नागरिकों के लिए बनाया जा रहा था तो उसे भारत की प्रमुख राजभाषा हिंदी में मूलरूप से बनाया जाना था, स्वतंत्रता सेनानी मोहनदास कर्मचंद गांधी उर्फ महात्मा ने भी कहा था कि जिस राष्ट्र की कोई भाषा नहीं होती वह गूंगा होता है, संविधान के अनुच्छेद ३४३ में स्वयं विधान निर्मात्री सभा ने 'हिन्दी' को संघ की राजभाषा घोषित किया है।
हिन्दी में अनुवादित संविधान में संविधान को 'भारत का संविधान' नाम दिया है। देश का नाम भारत से हिन्दुस्तान और इण्डिया कैसे हुआ, इसका संक्षिप्त परिचय: अंग्रेज भारत में व्यापारी के रूप में आये थे। लंदन के कुछ व्यापारियों द्वारा 'ईस्ट इण्डिया कम्पनी' को दिनांक ३१ दिसम्बर, १६०० को इग्लेण्ड की महारानी ने चार्टर प्रदान किया था। इस चार्टर के द्वारा कम्पनी को १५ वर्ष के लिये भारत व दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ क्षेत्रों में व्यापार का एकाधिकार दिया गया, उस समय इस देश का नाम 'भारत' था।
ङ इण्डिया का वास्तविक नाम 'भारत' है, यह नाम भरत चक्रवर्ती प्रथम तीर्थंकर ऋषभ देव के पुत्र थे, उनके नाम पर रखा गया था। वस्तुतः भारत में सभ्यता का प्रारम्भ भरत चक्रवर्ती के समय ही से माना जाता है।
च अंग्रेजी इण्डिया का पुराना नाम 'भारत' था। यह नाम कैसे पड़ा इसका भी एक इतिहास है। मानव सभ्यता का जब प्रारम्भ हुआ, उस समय देश का संस्कृत नाम 'भारत' था। इसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। इण्डिया के भूगोल का इतिहास इंगित करत|
हैं कि यह भूमि सात नदियों की थी। ऋग्वेद की सातवीं पुस्तक के १८वें श्लोक में १० राजाओं के युद्ध अर्थात 'दशाराजना' का उल्लेख है। यह युद्ध उस समय की बलशाली १० ट्राइब्स के मध्य हुआ था, जिन्होंने सम्राट सुदास, जो भारत नामक ट्राइब्स का प्रतिनिधित्व करते थे, जिसका संबंध तिर्तशू क्लदेजल से था। यह युद्ध रावी नदी पर हुआ था जो पंजाब में है। सम्राट सुदास को इस युद्ध में बड़ी सफलता मिली। इसके फलस्वरूप भारत ट्राइब्स का नाम लोगों की जुबान पर आ गया और इस भूमि को भारतवर्ष नाम दिया गया जिसका अर्थ है भरत की भूमि
छ महाभारत में 'भारत' नाम का उल्लेख इस रूप में मिलता है कि अखण्ड भूमी को 'भारतवर्ष' के नाम से जाना जाता था, यह नाम महाराजा भरत चक्रवर्ती के नाम पर था। भरत, भरत क्लर्देजल के जन्मदाता थे। इस वंश परम्परा से ही पाण्डव व कौरव थे। भरत हस्तिनापुर राजा दुष्यन्त व महारानी शकुन्तला के सुपुत्र थे। ये क्षत्रिय वर्ण के थे। भरत ने कई राज्यों को जीतकर सबको मिलाकर महान भारत बनाया था, यही भारतवर्ष कहलाया।
ज विष्णु पुराण में इस भूमि को भारतवर्ष के नाम से सम्बोधित किया है, जबसे राजा ऋषभ ने
इसे अपने पुत्र भरत को दिया था और वे स्वयं राज्य को त्याग कर मुनि हो गये थे । विष्णु पुराण में सम्बन्धित श्लोक इस प्रकार है :
उत्तर समुद्र है, और दक्षिण हिमालय है। वर्ष भारत का है, उस देश का नाम जहां संतान पैदा होती है।
इस श्लोक का अर्थ है, वह देश (वर्षम) जो समुद्र के उत्तर में तथा बर्फ से आच्छादित दक्षिण में है, जिसे 'भारत' नाम से जाना जाता है, जहां भरत के वंशज निवास करते हैं। अतः यह कहा जाता है कि देश का नाम पुराणों में उस भूमि को कहा गया है जो 'भारत वर्षम' हैं। यह आश्चर्यजनक है कि भारतवर्ष में वे देश थे जो आज पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चीन, इरान, उजबेकिस्तान, ताजिकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश आदि । 'भारत' संस्कृत नाम है जो अग्नि का प्रतीक है, भारत संस्कृत के बीज शब्द 'भा' से बना है, जिसका अर्थ है। ऐसा देश जो ज्ञान की खोज में लीन है।
झ इण्डिया के साथ इसे हिन्दुस्तान भी कहा जाता रहा है यह पर्सियन शब्द से उत्पन्न है जिसका अर्थ है, हिन्दुओं का देश १९४७ से पूर्व यह हिन्दुस्तान नाम से भी जाना जाता रहा है। सभ्यता के प्रारम्भ से अब तक देश व विदेशों में देश को निम्नलिखित नामों से जाना जाता था:
1. भरत भारत:
२. जम्बूद्वीप
आर्यावर्त Aryavarta
४. नाभिवर्ष
६. भारत/ भारत खण्ड हिन्द / हिन्दुस्तान
८. इण्डिया
९. मेलुहा
१०. भारतवर्ष ११. होडू
१२. अजनाभवर्ष
भारत / भारतवर्ष का पूर्वनाम जम्बूद्वीप:- प्राचीन शास्त्र में भारत का नाम जम्बूद्वीप है । साउथ
ट ईस्ट एशिया के देशों के इतिहास में भारत को जम्बूद्वीप कहा जाता था। भारत का यह नाम थाइलेण्ड, मलेशिया, जावा, बाली के देशों के इतिहास में मिलता है। इस क्षेत्र (द्वीप) में जम्बू पेड़ थे, इसलिए 'जम्बूद्वीप' नाम दिया गया।
नाभिवर्ष जब भारत को भारतवर्ष कहा जाता था, उससे पूर्व 'नाभिवर्ष' भी कहा जाता रहा है। राजा नाभि ऋषभदेव के पिता थे। राजा नाभि सूर्यवंशी थे। आदिपुराण
तियान्जूह यह चीन व जापान में 'भारत' के लिये बोला जाता था। जापानी में इसका अर्थ है स्वर्ग भूमि
होड़ : भारत का नाम हैं। Old Testament में भारत का नाम होड़ मिलता है। एरिजोना, यूएस में भारत शब्द की उत्पत्ति हिन्बू के शब्द Baraeth से है जिसका अर्थ है 'कॉवेनेन्ट'। में
भारत : 'भारत' संस्कृत का शब्द है और यह बहुत प्राचीन है। 'भारत' का उल्लेख हिन्दु पुराणों में तथा भारतवर्ष का महाभारत में मिलता है। ऋग्वेद में भारत में रहने वाली जाति को 'भारत' कहा गया है वह इसके क्षेत्र को भारतवर्ष जो उत्तर में हिम्प्राय से साउथ में समुद्र तक फैला हुआ था। यह क्षेत्र छोटे-छोटे भागों में बंटा हुआ था, किन्तु समग्रता व एकता में यह
पुराणाम तथा भारत का महाभारत में मिलता है भारत रहन वाला जति का 'भारत' कहा गया है वह इसके क्षेत्र को भारतवर्ष जो उत्तर में हिम्प्राय से साउथ में समुद्र तक फैला हुआ था। यह क्षेत्र छोटे-छोटे भागों में बंटा हुआ था, किन्तु समग्रता व एकता में यह भारत था। 'भरतनाटय' नृत्य से भी इसका संबंध है। 'भ' का अर्थ है भावम् 'र' से 'रागम' अर्थात मधुर ध्वनि तथा 'त' का उल्लेख है 'तालम' सुर साधना । यह सब भारत की गौरवशाली सभ्यता, एकता और अखण्डता को दर्शाता है।
ड स्वतंत्रता संग्राम के समय और आजादी से पूर्व इस देश को हिन्दुस्तान, भारत व इण्डिया के नाम से पुकारा जाता था। पं. नेहरू ने अपनी पुस्तक 'डिस्कवरी ऑफ इण्डिया' जिसका प्रकाशन सन् १९४६ में हुआ था, उसमें 'भारत' नाम के बाबत उन्होंने ये तथ्य दियेः "बहुधा मैं भारत के लोगों से मिला और मैंने उनसे कहा कि जिसे हम इण्डिया मानते हैं, भारतवर्ष मानते हैं, भारत कहते हैं वह संस्कृत शब्द से बना है और उस समय के निवासियों के नाम के लोगों को दर्शाता है।"
संविधान के अनुच्छेद १ के समय चर्चा में यह बात आई थी कि 'इण्डिया' शब्द के मूल
सिन्धु शब्द जो एक नदी का नाम है, छिपा हुआ है। प्राचीन परशिया तथा अरबी के
अक्षर 'एस' को 'ह' से उच्चारित किया जाता था। ईसा से पूर्व तीसवीं शताब्दी में 'सिन्धु' को 'हिन्द' कहा जाता था और यह देश हिन्दुस्तान कहा गया। ग्रीक वाले सिन्धु को इण्डस कहते हैं और उसके जुड़े देश को इण्डिया नाम दिया गया।
ण यहां लिखना समीचीन होगा कि पाश्चात्य देशों (इंग्लैण्ड) से जब इस देश को इण्डिया नाम दिया गया तब भी यह देश भारत ही कहा जाता था। संविधान के लिये इस देश को इण्डिया नाम दिया गया। अनुच्छेद १ में कहा गया इण्डिया यानी 'भारत' । इण्डिया शब्द भारतीयों की भावना की अभिव्यक्ति नहीं कर सकता, न ही भारतीय संस्कृति के गौरव, अतीत व इतिहास को ही दर्शाता है।
मेलुहा : मेसोपोटेमिया में भारत को इस शब्द से जाना जाता था और इण्डस वेली की सभ्यता से इसे जोड़ा गया है। आर्यावर्तः वैदिक साहित्य में जैसे मनुस्मृति में इस पुण्य भूमि को आर्यावर्त कहा गया है।
उत्तरी भाग को आर्यावर्त कहा जाता था।
नाभिवर्षा: महाराजा नाभि जैनों के प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव के पिता थे, अतः उनके नाम पर इस भूमि को नाभिवर्षा कहा गया था।
• इण्डिया / हिन्दुस्तान इस नाम को राजनीति से जोड़ा जा सकता है, क्योंकि देश को यह नाम दिया गया। परशियन्स जो इण्डस वेली में थे। यह घटना सातवीं सदी बीसीई की थी। हिन्दू वस्तुतः संस्कृत शब्द सिन्धु का ही नाम है। सिन्धु वेली का नीचे का यह क्षेत्र इस नाम से जाना जाता था। यह क्रिश्चियन एरा की पहली सदी में 'हिन्दुस्तान' नाम से जाना गया। श्रीमदभागवत महापुराण में कथा के अनुसार ऋषभदेव के बेटे भरत थे। एक व्युत्पत्ति के अनुसार भारत (भारत) शब्द का अर्थ है आन्तरिक प्रकाश या विवेक रूपी प्रकाश में लीन।
त मुगलों की शासनकाल में देश को हिन्दुस्तान नाम दिया गया। उस समय भी जनता में 'भारत' नाम प्रचलित था। १६वीं शताब्दी में दक्षिणी एशिया में हिन्दुस्तान नाम का प्रयोग होता था। १८वीं सदी में इस नाम का प्रयोग मुगलों के शासन के क्षेत्र को दर्शाता है।
१८वीं सदी में अंग्रेजी शासन द्वारा प्रकाशित नक्शों में इस देश को इण्डिया नाम दिया गया। साउथ एशिया में धीरे-धीरे हिन्दुस्तान के स्थान पर इण्डिया नाम लिखा जाने लगा। यह अंग्रेजी राज्य के उपनिवेशवाद की काली तश्वीर है। १. गांधी जी ने अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता की लड़ाई में 'भारत माता की जय' का नारा
दिया था ना कि 'इण्डिया' माता की जय ।
२. देश का राष्ट्रगान, देश के राष्ट्रगीत का नाम 'भारत' है ना कि इण्डिया ३. भारतीय दण्ड संहिता अंग्रेजी शासन ने बनाई थी उसका अंग्रेजी नाम India Penal Code 1860 रखा था और हिन्दी अनुवाद में 'भारत' शब्द का प्रयोग
किया है क्योंकि देश का नाम प्राचीन काल से 'भारत या भारतवर्ष' जो कि अंग्रेजों के आने से सदियों पहले से चला आ रहा था।
४. अंग्रेजों के शासन से पूर्व मुगलों के समय देश का नाम भारत था, मुगलों ने इसे 'हिन्दुस्तान' के नाम से पुकारा ।
भारत के स्वाधीनता संग्राम के समय देश की जनता ने 'भारत माता की जय' का नारा लगाया था। स्वतंत्रता के बाद भारत का संविधान बनाने हेतु संविधान निर्मात्री कमेटी का डॉ. अम्बेडकर के सभापतित्व में गठन दिनांक २९ अगस्त १९४७ को किया गया। जब संविधान के ड्राफ्ट के अनुच्छेद १ का वाचन १७ सितम्बर १९४९ को प्रारम्भ हुआ तो डेलीगेट्स में स्पष्ट मत विभाजन देखा गया। हरि विष्णु कामथ, जो फोरवर्ड ब्लॉक के सदस्य थे उन्होंने कहा कि प्रथम अनुच्छेद का 'भारत या अंग्रेजी में इण्डिया' की शब्दावली से माना जावे। सेठ गोविन्द दास ने जो सेन्ट्रल प्रोविन्स व बरार के प्रतिनिधि थे, उन्होंने कहा अनुच्छेद १ को पुनः लिखा जावे, 'भारत' को इण्डिया विदेशों में कहा जाता है'। हरगोविन्द पन्त ने जो उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों से थे, कहा कि हम यह चाहते हैं कि अनुच्छेद १ में केवल 'भारतवर्ष' लिखा जावे जो देश का नाम होगा। पंत जी ने विधान निर्मात्री सभा में कहा था जो कि हमारी बंद आंखें व दिमाग को खोलने वाला था, उन्होंने कहा
'समझ से परे है कि अन्य सदस्य का 'इण्डिया' शब्द से क्या लगाव है? देश को 'इण्डिया'
नाम तो विदेशियों का दिया हुआ है, जो भारत में इसलिये आये थे कि भारत में बहुत धन है, उसे प्राप्त करना है। यदि हम इस नाम को ग्रहण करते हैं तो हमें शर्म आनी चाहिये कि यह नाम विदेशी शासन ने हमारे ऊपर थोपा है। किन्तु बहुमत से अनुच्छेद १ पारित कर दिया गया, जो भविष्य के भारत के मुकुट पर एक काला बदनुमा गुलामी का दाग इन्डिया दे गया।
समय-समय पर देश के नाम के बाबत विवाद उठता रहा। सन २००५ में आईएएस से
रिटायर हुए वी. सुन्दरम एक लेख में लिखा कि देश का नाम तो केवल 'भारत' ही होना
चाहिये।
सन २०१२ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य शान्ताराम नायक ने राज्यसभा में प्राइवेट बिल प्रस्तुत किया, उनका कहना था कि 'इण्डिया' केवल एक क्षेत्र का नाम मात्र है जबकि 'भारत' में गौरवशाली परम्परा झलकती है। हम 'भारत माता की जय' बोलते हैं। इण्डिया की जय नहीं बोलते, किन्तु राज्यसभा में बिल पर विचार ही नहीं किया गया।
तारीख २० अक्टूबर २००९ को वरिष्ठ पत्रकार व संपादक बिजय कुमार जैन के संपादकत्व में विश्व प्रसिद्ध पत्रिका 'मैं भारत हूँ' का प्रकाशन भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई से शुरू किया गया, उसमें यह लिखा जाने लगा कि विश्व को भारत माँ बताना चाहती है कि "मैं भारत हूँ, इण्डिया नहीं।
ध अजनाभवर्ष : प्रसिद्ध पुराण भागवत के अनुसार सृष्टि के शुरूआत में मनु नाम का राजा था। उनके पुत्र का नाम नाभिराय था। नाभिराय के पुत्र अजनाभवर्ष के पुत्र -७
ऋषभदेव थे, जो जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर थे। उस काल में भारतवर्ष को अजनाभवर्ष के नाम से जाना जाता था।
भारत के तीन भरत : भारतवर्ष का नामकरण, भरत के नाम पर भारत हुआ। भा भारतवर्ष में तीन भरत हुये। एक ऋषभदेव के पुत्र, दूसरे दशरथ भरत और तीसरा दुष्य शकुन्तला पुत्र भरत ।
भरत १ : भारत नाम का संबंध राजा मनु के वंशज जैनों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव पुत्र भरत से हैं। वैदिक, बौद्ध और जैन पुराणों के ग्रन्थों में ऋषभदेव का उल्लेख मिलता ऋग्वेद का काल की सभ्यता ३६००० वर्ष पुरानी है (पद ३८)। खारवेल की हाथी गुफ शिलालेख में भी इसका उल्लेख है। ऋषभदेव स्वयंभू मनु के पांचवीं पीढ़ी में हुए। स्व मनु, प्रियव्रत, अग्रीध, नाभि और ऋषमा मत्स्य पुराण में उल्लेख है कि महायोगी भरत नाम पर देश का नाम 'भारत' हुआ।
भरत- २: भगवान राम के छोटे भाई भरत दशरथ के तीसरे पुत्र थे। उस काल में देश 'भारत' कहा जाता था (मत्स्य पुराण, अध्याय ३७) । भरत ३: पुरुवंश के राजा दुष्यन्त और शकुन्तला के पुत्र भरत की गणना 'महाभारत वर्णित सोलह सर्वश्रेष्ठ राजाओं में होती है। कालीदास कृत महान संस्कृत ग्रन्थ 'अभिश शकुन्तलाम्' में वर्णित सोलह सर्वश्रेष्ठ राजाओं में होती थी। 'अभिज्ञान शकुन्तला' के वृतान्त के अनुसार राजा दुष्यन्त और उनकी धर्मपत्नी शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष
का नामकरण हुआ|
न वेद व्यास ऋग्वेद काल का भौगोलिक वर्णन करते हुए लिखते हैं कि उस समय प्रदेश में कई वैदिक समूहों अथवा जातियों में विभाजन था, जिनमें गांधारी, अनुद्रुहा, पुरू, तुरवश और भारत आदि थी, निवासियों के कारण देश का नाम भारतवर्ष हुआ। गीता के श्लोक में 'भारत' शब्द का प्रयोग है, जिसका अर्थ है 'भा' यानी धर्म और 'रत' अर्थात लीन होना, इनका अर्थ है जो धर्म में लीन है। भारत धर्म प्राण देश है।
प उपरोक्त नामों के अतिरिक्त 'भारत' के नाम की उत्पत्ति का वर्णन लेखक जितेन्द्र कुमार भोमाज की पुस्तक 'भारतवर्ष का नामकरण' इतिहास और संस्कृति में मिलता है, इसका प्रकाशन जैन संस्कृत समरक्षक संघ सोलापुर १९७४-१९७५ में मिलता है यह मराठी भाषा में लिखी गई है। इस पुस्तक में उपरोक्त 'भारत' के विभिन्न नामों का जो वर्णन किया गया है उसे प्रसंगों के द्वारा स्पष्ट किया है। अतः संक्षेप में 'भारतवर्ष' के नामकरण का इतिहास हिन्दी में निम्नलिखित हैं। यह वर्णन उपरोक्त कथन को समर्थन देता हैं।
फ़ भारत के नामकरण का परिचय, भारत शब्द की उत्पत्ति, भारत के प्राकृत प्रयोग से हुई हैं। श्री प्री. आर. डी. करमरकर ने १९५१ में लखनऊ ओरिएंटल कॉन्फ्रेंस में पढ़े एक लेख में इसे प्रस्तुत किया है।
नाभि के पुत्र ऋषभ उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती सम्राट थे। उनकी महिमा अलौकिक थी। (पृष्ठ क्र. ८) वह प्राचीन काल में प्रथम चक्रवर्ती बन गया था और उसके पास १४ रत्न, ३२,००० राजा और लाखों चतुरंग सेनाएँ थी। इसका उल्लेख भागवत पुराण, -८
हरिवंश पुराण, आदि पुराण, विष्णु पुराण, ब्रह्म पुराण आदि में मित्रता है।
ऋषभ का पुत्र भरत बहुत प्राचीन है। स्वयंभुव मनु प्रियव्रत, अग्निग्रह, नाभि, ऋषभ और फिर भरत ऐसी मार्कडेय पुराण में वंशावली है। तदनुसार भरत पाँचवाँ वंशज बन जाता है। एक अन्य परंपरा के अनुसार नाभि अंतिम मनु है और ऋषभेय भरत इक्ष्वाकु वंश का दूसरा वंशज है। दुष्यंत के पुत्र सर्वदमन भरत न केवल पहले मनु थे बल्कि पुरुवंश के कम से कम १९ वें वंशज थे (पू. १४७) उनके कबीले को भरतकुल नाम मिला और उनकी वंशावली भरत के नाम से प्रसिद्ध हुई। आदिपर्व ( २ / ९६, ६७/२४, ९७/१२, ७४ /३१, ९४/१९) में इसका उल्लेख है। (पृ. ७२) सर्वदमन भरत चक्रवर्ती सम्राट थे लेकिन कई लोग उस परंपरा में सम्राट बन गए। नहुष, ययाति, जनमेजय सभी विजयी सम्राट थे। दशरथ के पुत्र भरत ने श्री राम के नाम पर राज्य का शासन किया, इसलिए उनके नाम से इसका नाम भारतवर्ष नही पड़ सकता। (पृ. ७३ ) ।
ब प्राचीन जैन आगम ग्रंथों में हमारे देश के नाम और नामकरण के बारे में स्पष्ट उल्लेख है। सम्राट भरत की राजधानी विनीता (अयोध्या) थी। उनके पराक्रम का वर्णन डा. पी. सी. जैन डायरेक्टर सरस्वती इंस्टीट्यूट ऑफ हायर स्टडीज एंड रिसर्च, मालवीय नगर, जयपुर ने अपने शोध में विस्तार से किया है जो निम्न प्रकार है:
आचार्य बलदेव उपाध्याय, सूरदास काव्य, डॉ. जायसवाल, डॉ. अवधरीलाल अवस्थी, डॉ. पी. सी. रॉयचौधरी, डॉ. मंगलदेव शास्त्री, डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल, डॉ. प्रेमसागर जैन, प्रो. आर. डी. करमकर आदि ने ऋषभ के पुत्र भरत के कारण भारत वर्ष के रूप में स्वीकार किया है।
संविधान में जो नाम संघ और उसके राज्य क्षेत्र का है, वह केवल भारत क्यों हो?
प्राचीन काल में जैन संस्कृति के उत्कर्ष के समय इस देव भूमि को जम्बू द्वीप के नाम से
सम्बोधित किया गया था। आर्य सभ्यता के समय पावन भूमि का नाम आर्याव्रत था। वर्तमान
इतिहासकारों और विद्वानों ने जैनों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के यशस्वी पुत्र 'भरत' के
नाम पर दिया है।
य पं. जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक 'भारत की खोज में इस देश को भारत / भारतवर्ष/ हिन्दुस्तान/ इण्डिया के नाम से पुकारा है। अंग्रेजी में इस पुस्तक का नाम 'डिस्कवरी ऑफ इण्डिया' है, किन्तु हिन्दी में इसे इण्डिया की खोज न कह कर, भारत की खोज' कहा गया है।
AA हमारे पुरातन शास्त्रों में हिन्दू धर्म का कोई उल्लेख नहीं हैं। विदेशियों ने हिन्दू नाम दिया। प्रारंभिक संस्कृति जैनों की श्रमण संस्कृति थी और बाद में वेदों से वैदिक संस्कृति का प्रारंभ हुआ। उन्होंने सिंधु नदी को इण्डस अथवा हिंद कहा। केवल सिंधु नदी से लगे भाग को इण्डिया कहने से देश का नाम जो भारत चला आ रहा था, समाप्त नहीं हुआ।
भारतीय और अक्षर चतुर्थ संस्करण २००० के पार्ट-घ्घ् के चेप्टर घ् में दिये गये प्रकरण से स्पष्ट होता है। तेलगू के लोग तमिलनाडू को अर्वनाडू पुकारते थे, क्योंकि आंध्रप्रदेश के दक्षिण के छोटे भाग को अर्व कहते थे, अतः वह भी तमिलनाडू राज्य ही रहा। अतः विदेशी, जो सिंधु नदी की भूमि से सुदूर आये, जिसे भारत कहा जाता है, वह भारत ही था और आज भी भारत माना जाता है।
AB दक्षिण पूर्व के राज्यों में जैसे कम्बोडिया, जावा सुमात्रा आदि में आज भी रामायण जीवित है। कम्बोडिया में अयोध्या, चम्पा आदि के नाम 'जैन संस्कृति के उत्कर्ष' का इतिहास की और इंगित करते हैं। उस क्षेत्र में अर्धमागधी के शिलालेख भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं।
थाईलैण्ड का राज्य परिवार 'राम' को ही अपना वंशज मानते हैं। भारत के संविधान को अतीत की पृष्ठभूमि उपेक्षा से बनाया गया था।
AB अंग्रेज भारत में व्यापारी के रूप में यहां व्यापार को विस्तार देने हेतु आये थे। जिन्होंने एक ईस्ट इंडिया कम्पनी बनाई थी जिसे महारानी का शाही चार्टर ३१ दिसम्बर, १६०० को मिला था। सन् १७०७ में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल राज्य कमजोर हो गया और १७५७ में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराकर कंपनी ने प्लासी की लड़ाई में विजय प्राप्त की और यहीं से अंग्रेजों के शासन की नींव पड़ी। सन् १८५७ के विद्रोह के साथ भारतीयों का स्वाधीनता संग्राम प्रारंभ हुआ जिसके साथ उपनिवेशवाद को हमने चुनौती दी। सन् १८५५ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म हुआ। कांग्रेस ने १९०६ में उपनिवेशवाद के विरूद्ध भारत माता की जय हो की आवाज उठाई और स्वराज्य का लक्ष्य निर्धारित किया। ब्रिटिश संसद ने भारत शासन एक्ट १९३५ में बनाया । १९४२ में गांधीजी के नेतृत्व में 'अंग्रेजो भारत छोड़ो' आंदोलन प्रारंभ हुआ।
AB प्रार्थी की याचिका में कई आवश्यक प्रश्न नहीं उठाये गये थे। हम यदि संविधान के अनु. १ व उप अनु. (१) का विश्लेषण करें और समस्त संविधान के संदर्भ में परीक्षण करें तो हमें दोष स्पष्ट दिखाई देता है, क्योंकि शब्द 'इण्डिया' की परिभाषा क्या है, यह कहीं वर्णित्त नहीं की गई है। अनु. ३६६ में भी इण्डिया शब्द का क्या अर्थ है परिभाषित नहीं किया गया है। भारत सरकार अधिनियम, १९३५ में हमें इण्डिया शब्द की परिभाषा नहीं मिलती, उसमें India States की परिभाषा वही है जो १९३५ के अधिनियम की धारा ३११ (१) में दी गई है अर्थात् 'ब्रिटिश इण्डिया' उस क्षेत्र को कहते हैं जो इण्डियन स्टेट्स से बना है। याद रहे इसके एक भाग से पाकिस्तान बना है। अतः यह परिभाषा किसी अर्थ की नहीं और यह स्वीकार करना ही पड़ेगा कि शब्द इण्डिया अपरिभाषित है और देश के नाम को इंगित नहीं कर सकता। इसका यही अभिप्राय है कि शब्द इण्डिया का प्रयोग देश के नाम के लिए कोई अर्थ नहीं रखता। जहां तक भारत नाम का प्रश्न है इतिहास में पूर्व में भी भारत माना गया है कि ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर देश का नाम भारतवर्ष रखा गया था। भारत में धर्म की प्रभावना ऋषभ काल से है। भरत के नाम पर "भारत" नाम इसलिए दिया गया कि भारत का शाब्दिक अर्थ है भारत अर्थात् धर्म में लीन। आज भी भारत के निवासी धार्मिक हैं यद्यपि राष्ट्र का कोई धर्म नहीं होता|
स्वतंत्रता का मूल अधिकार संविधान में सबको है। देश के नागरिक केन्द्र सरकार से प्रार्थना करते हैं कि संविधान के अनु. १ के उपअनु. (१) में जिस 'इण्डिया' शब्द का उल्लेख है, उसे अस्पष्ट अथवा अर्थहीन मानकर निकाल दिया जावे तथा देश का नाम 'भारत' माना जावे। संविधान के अनु. १ (१) को इस प्रकार संशोधित किया जावे कि भारत राज्यों का संघ होगा। संविधान निर्माताओं को 'भारत' का संविधान बनाना था, जिसकी नींव नेहरू रिपोर्ट दिनांक १० अगस्त, १९२८ को रखी गई थी।
AD भारत संज्ञा विशेष (Proper Noun) है। इसका अनुवाद नहीं हो सकता। इसलिए हिन्दी में भी इसे Constitution Of Bharat ही रखा जाना चाहिए था। यदि किसी का नाम हीरालाल है तो अंग्रेजी में वह Diamond Red नहीं होगा। समस्त देश ने पं. जवाहरलाल नेहरू को गर्व के साथ सम्मान दिया है और जब उन्होंने इस देश को एक नाम हिन्दुस्तान माना है तो भारत के विभाजन को ऐतिहासिक सत्य मानकर एक भाग को हिन्दुस्तान और अलग हुए दूसरे भाग को पाकिस्तान स्वीकार किए जाने में भी कोई आपत्ति नहीं हो सकती। उक्त रिट याचिका में प्रार्थी ने देश का नाम हिन्दुस्तान माने जाने की भी प्रार्थना की थी। हिंदुस्तान एक जातिबोध की और उद्वेलित करता है इसलिए अखण्ड भूमि को, जो कि सर्वधर्म व जाति से समाहित है उसे 'भारत' ही कहा जाना चाहिए। विचार किया जाना चाहिए।
(AF देश के अधिकांश नागरिकों की भाषा हिन्दी थी, इसलिये संविधान निर्मात्री सभा को भारत का संविधान हिन्दी में बनाना चाहिये था, किन्तु मुट्ठी भर अंग्रेजी के भक्तों के कारण संविधान की मूल प्रति अंग्रेजी में लिखी गई और बिना सोचे-समझे भारत को अंग्रेजी नाम से ही संविधान का शीर्षक Constitution Of India रख दिया गया, जबकि शीर्षक को 'भारत का संविधान' दिया जाना अपेक्षित था। हिन्दी की मूल प्रति में इसे भारत का संविधान कहा है न कि इण्डिया का संविधान अनुच्छेद १ के उपचरण (१) में अंग्रेजी के मूल संविधान में लिखा है, India That is Bharat Shall be a Unioun of State और फिर हिन्दी में इसी को भारत यानी भारत राज्यों का संघ होगा, लिखा जाना चाहिये था न कि इण्डिया यानी भारत राज्यों का संघ। Government of India Act, १९३५ को हिन्दी में भारत शासन एक्ट, १९३५ कहा गया है। भारत व इण्डिया की परिभाषा के अभाव में अनुच्छेद १ अस्पष्ट है और उपरोक्त कथनों के अनुसार संविधान में संशोधन आवश्यक है।
AG यह कि माननीय तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ जी ने निजी बिल संख्या १२१ सन् २०१४ संविधान संशोधन की मांग करते हुये निवेदन किया था कि India that is Bharat Bharat, That is Hindustan, Shall be a Union of State किया जाये 'India' शब्द को जहाँ पर भी संविधान में "India" आया है उसे "Hindustan" शब्द को प्रतिस्थापित किया जावे।
कांग्रेस सांसद श्री शांताराम नाईक ने भी हमारे देश का नाम इंडिया के स्थान पर 'भारत'
किये जाने की मांग की है।
AH यह कि 'मैं भारत हूँ' की ओर से दिनांक १०-०२-२०२१ को माननीय
प्रधानमंत्री, भारत एवं गृह मंत्री तथा लोक सभा सदस्यों को ज्ञापन प्रस्तुत किये गये थे लेकिन उनका कोई उत्तर अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है जिसकी प्रति संलग्न है।
AI यह कि 'मैं भारत हूँ' परिवार के अतिरिक्त देश के विभिन्न भागों से यह मांग भारत सरकार के साथ विभिन्न राज्यों के प्रमुखों से भी निवेदन किया गया है जिनमें कुछ प्रमुख ज्ञापनों
की प्रति इस याचिका के साथ संलग्न है: १. जिला अभिभाषक संघ अलवर दिनांक २४-०२-२०२१
अलवर जिला वैश्य महासम्मेलन समिति, अलवर दिनांक ७-०३-२०२१
३. खिल्ली मल जैन, एडवोकेट पूर्व निःशक्तजन, राजस्थान दिनांक २९-१२-२०२००४-०१-२०२१.१०-०२-२०२१
अतः आपसे प्रार्थना है कि उपरोक्त विषय को लोकहित में अनुच्छेद १(१) को संविधान के संशोधन की प्रक्रिया के अनुसार इस प्रकार संशोधित किया जावे कि अनुच्छेद १ (१) 'भारत राज्यों का संघ होगा। (अंग्रेजी में Bharat Shall be a Union of States ) | संविधान में जो नाम संघ और उसके राज्य क्षेत्र का है वह केवल भारत हो। 'भारत' के गौरवशाली अतीत और भारतीय संस्कृति की गरिमामयी परम्परा तथा समस्त भारतीयों की भावना अक्षुण्ण रखते हुये संविधान में उपरोक्त संशोधन हेतु भारत सरकार उचित कदम उठा कर देश के लोगों को न्याय दिलाये। भारत गणतंत्र की अखण्डता, एकता और समरसता के हेतु तथा भारत माँ के सम्मान हेतु माँ भारती के प्रति ऐतिहासिक पूजा, आराधना व अर्चना होगी। भारत के लोग वर्तमान भारत सरकार के सदैव आभारी रहेंगे। जय भारत! दिनांक.......
याचिका मार्गदर्शक
• पूर्व न्यायाधीश राजस्थान
श्री. पनचंद जैन
२३, मौजा कॉलोनी, मालवे नगर,
जयपुर, राजस्थान,
तृतीय
याचिकाकर्ता
बिजय कुमार जैन राष्ट्रीय अध्यक्ष मैं भारत हूँ फाउंडेशन
वरिष्ठ पत्रकार व संपादक
भारत-३०२०१७
पारष्ठ पत्रकार साद
बी- २१७, हिन्द सौराष्ट्र इण्डस्ट्रीयल इस्टेट, मरोल, अंधेरी पूर्व, मुम्बई, महाराष्ट्र,
भारत की ओर से 400059
• अधिवत्ता खिल्लीमल जैन २, विकास पथ, अलवर, राजस्थान, भारत- ३०१००१
सांसद की ओर से
(दूसरा खण्ड)
भारत सरकार द्वारा पंजीकृत क्र. U80300MH2021NPL369101
मैं भारत हूँ फाउंडेशन
भारत को 'भारत'
भारतीय संस्कृति की ओर अग्रसर
भारत की संस्कृति में भारत
हमारा देश "भारतवर्ष" के नाम से जाना जाता रहा है। सभी विद्वान मानते हैं कि यह नाम भरत चक्रवर्ती के नाम पर पड़ा है। इस भारत भूमि में तीन भरत हुए हैं (१.) दशरथ पुत्र भरत (२.) दुष्यन्त पुत्र भरत और (३.) ऋषभ पुत्र भरत । इनमें से किस 'भरत' के नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष प्रसिद्ध हुआ, यह विचारणीय है। कुछ विद्वानों की धारणा थी कि यह नाम राजा दुष्यन्त के पुत्र भरत के नाम पर पड़ा है और काफी अर्से तक जनमानस द्वारा यही बात स्वीकार की जाती रही, किन्तु अब यह सिद्ध हो गया है कि वैदिक धारा के ग्रन्थों में भी प्रजापति ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र भरत को ही इस देश के नाम भारतवर्ष का मूलाधार माना गया है। ऋषभ पुत्र भरत से पहले इस देश का नाम 'अजनाभवर्ष' या 'नाभि-खण्ड' था, जो अन्तिम कुलकर नाभिराय के नाम पर रखा गया था। बाद में उनके प्रपोत्र भरत के नाम पर यह देश भारतवर्ष कहलाया। डॉ. प्रेमसागर जैन ने अपनी पुस्तक 'भरत और भारत में स्कन्दपुराण, अग्निपुराण, नारदपुराण, मार्कण्डेयपुराण, शिवपुराण आदि अनेक हिन्दू धर्म ग्रन्थों से इस मत का अनुमोदन कर इस विषय में किसी भी प्रकार की भ्रान्ति के लिए अवकाश नहीं रहने दिया है। इस देश का नाम 'भारत / भारतवर्ष' ऋषभपुत्र भरत के नाम से हुआ है। यह तथ्य निम्न उद्धरणों से स्पष्ट
एवं पुष्ट होता है जैनेतर / वैदिक परम्परा उद्धृत उद्धरण
अग्निपुराण
शभा ने मरुदेवी से विवाह किया और सभा से भरत का जन्म हुआ। शाभा, जिसने अपने पुत्र दत्ताश्री को दिया था, हरि के पास चाल्या गाँव में गया।
भरताद् भारतं वर्ष भरतात् सुमतिस्त्वभूत ।। (१०७.१०-११) - 'नाभिराज' से 'मरुदेवी' में 'ऋषभ' का जन्म हुआ है। ऋषभ से 'भरत' हुए। ऋषभ ने राज्यश्री 'भरत' को प्रदानकर संन्यास ले लिया। भरत से इस देश का नाम 'भारतवर्ष' हुआ। भरत के पुत्र का नाम 'सुमति' था।
मार्कंडेय पुराण
अग्निधर के पुत्र नाभि थे और शभ के ब्राह्मण नाम का एक पुत्र था। ऋषभ से सौ पुत्रों में श्रेष्ठ वीर भरत उत्पन्न हुए। अपने बेटे का राज्याभिषेक करने के बाद बैल राजा एक महान निर्वासन पर चला गया परम सौभाग्यशाली राम ने पुलहा के आश्रम में शरण ली और तपस्या की
उनके पिता ने भरत को हिमाव का दक्षिणी वर्ष दिया।
इसलिए उस महान आत्मा के नाम पर भरत देश का नाम पड़ा (50.39 42) - अग्निधर के पुत्र नाभि ने ऋषभ को जन्म दिया, जिसने भरत को जन्म दिया, जो अपने सौ भाइयों में सबसे बड़े थे। ऋषभ ने अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत का राज्याभिषेक किया और महाप्रवज्य ग्रहण किया और सौभाग्यशाली व्यक्ति ने पुलह के आश्रम में तपस्या की। महात्मा 'भारत' के नाम पर देश का नाम 'भारतवर्ष' रखा गया, जिसे ऋषभ ने 'हिमावत' नामक दक्षिणी क्षेत्र के शासन के लिए भरत को दिया था।
उस महात्मा 'भरत' के नाम से इस देश का नाम 'भारतवर्ष' हुआ।
ब्रह्माण्डपुराण
नाभि ने मरुदेवी नाम के एक पुत्र को जन्म दिया जो बहुत उज्ज्वल था।
ऋषभ राजाओं में सर्वश्रेष्ठ और सभी क्षत्रियों के पूर्वज। शभ से सौ पुत्रों के पराक्रमी बड़े भाई भरत का जन्म हुआ।
बैल, अपने बेटे को स्थापित करके, महान निर्वासन में रहा।
उन्होंने भरत को हिमालय युद्ध के दक्षिणी वर्ष की जानकारी दी।
इसलिए विद्वान देश को भरत के नाम से जानते हैं। (पिछला 2.4) - नाभि ने 'ऋषभ' नाम के एक पुत्र को जन्म दिया जो मरुदेवी से बहुत तेज था। ऋषभदेव 'पृथ्वी के सर्वश्रेष्ठ' और 'सभी क्षत्रियों के पूर्वज' थे वीर 'भारत' अपने सौ पुत्रों में सबसे बड़े थे। ऋषभ ने उनका राज्याभिषेक किया और महाप्रव्रज्या ले ली, उन्होंने भरत को शासन करने के लिए 'हिमावत' नाम का दक्षिणी भाग दिया और उस क्षेत्र को बाद में भरत के बाद 'भारतवर्ष' कहा गया।
स्कन्दपुराण
नाभि के पुत्र शभ थे और सभा से भरत उत्पन्न हुए। इस वर्ष को उनके नाम से भरत के नाम से जाना जाता है (खंडस्थ कौमारखंड 37.57) - नाभि के पुत्र ऋषभ थे, और ऋषभ 'भारत' बने। उनके बाद इस देश को भारत कहा जाता है।
महान बुद्धिजीवी नाभि ने मरुदेवी के गर्भ में एक पुत्र को जन्म दिया। ऋषभ में सभी क्षेत्रों के सर्वश्रेष्ठ राजाओं की पूजा की जाती है शभ से सौ पुत्रों के पराक्रमी बड़े भाई भरत का जन्म हुआ। तब बैल ने जो अपने पुत्र के प्रति स्नेही था, भरत का अभिषेक किया ज्ञान और वैराग्य पर भरोसा करके व्यक्ति इंद्रियों के महान नागों पर विजय प्राप्त कर सकता है। सर्वोच्च आत्मा, भगवान को, सभी आत्माओं की आत्मा में रखना। वह नग्न था, उलझा हुआ था, भूखा था, और बिना कपड़े पहने था, और वह अंधेरे में था।
निराश होकर, उन्होंने अपनी शंकाओं को त्याग दिया और शिव के परम धाम को प्राप्त किया।
उन्होंने भरत को हिमालय के दक्षिणी क्षेत्र की जानकारी दी।
इसलिए विद्वान देश को भरत के नाम से जानते हैं। (47.9 23) - महामती नाभि को उनकी पत्नी मरुदेवी से 'ऋषभ' नाम का एक पुत्र हुआ। वह ऋषभों (राजाओं) में सर्वश्रेष्ठ थे और सभी क्षत्रियों द्वारा उनकी पूजा की जाती थी। ऋषभ ने अपने सौ भाइयों में सबसे बड़े भरत को जन्म दिया। अपने पुत्र के प्रति स्नेही ऋषभदेव ने भरत को सिंहासन पर प्रतिष्ठित किया और स्वयं ज्ञान और त्याग को ग्रहण करते हुए, इंद्रियों के रूप में महान नागों पर विजय प्राप्त की और अपने पूरे दिल से भगवान को अपनी आत्मा में स्थापित किया और तपस्या में लगे। वे उस समय नग्न थे, उलझे हुए थे, भूखे मर रहे थे, बिना कपड़ों के और गंदे थे। उन्होंने सारी उम्मीद छोड़ दी थी। उन्होंने संदेह को त्याग दिया था और परमशिवपद को प्राप्त किया था। उसने हिमालय का दक्षिणी भाग भरत को दे दिया था। इसी भरत के नाम से विद्वान इसे भारतवर्ष कहते हैं।
वायुपुराण
तेजस्वी नाभि ने मरुदेवी के पुत्र को जन्म दिया। हे बैल में सर्वश्रेष्ठ राजाओं, वह सभी क्षत्रियों के पूर्वज हैं |
शभ से सौ पुत्रों के पराक्रमी बड़े भाई भरत का जन्म हुआ। अपने पुत्र भरत का राज्याभिषेक करने के बाद वह प्रातः सिंहासन पर विराजमान हुए |
हिमाह्वा ने भरत को दक्षिणी वर्षा की सूचना दी। इसलिए विद्वान लोग भरत देश को उसके नाम से जानते हैं
- नाभि के मरुदेवी से महाद्युतिवान 'ऋषभ' नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। वह 'ऋषभ' नृपतियों में उत्तम था और सम्पूर्ण क्षत्रियों द्वारा पूजित था। ऋषभ से 'भरत' की उत्पत्ति हुई जो सौ पुत्रों से अग्रज था। उस 'भरत' को राज्यपद पर अभिषिक्त कर ऋषभ स्वयं प्रवज्या में स्थित हो गये। उन्होंने हिमवान् के दक्षिण भाग को भरत के लिए दिया था। उसी भरत के नाम से विद्…
- यहां जगत्पिता ऋषभदेव प्रथम राजा हुए। सुर और असुर दोनों ही के इन्द्र उनके चरण-कमलों की वन्दन करते थे। उनके (ऋषभदेव के) सौ पुत्र थे। उनमें दो प्रमुख थे -भरत और बाहुबली । ऋषभदेव शतपुत्र - ज्येष को राजश्री सौंपकर प्रवज्जित हो गये। भारतवर्ष का चूड़ामणि (शिरोमुकुट) भरत हुआ। उसी के नाम इस देश को 'भारतवर्ष' ऐसा कहते हैं।
जम्बूदिवापन्नत्ति भरे एत्थादेव नहिद्दी महजजुए जवपली ओवमधि परिवार। से ऐनत्थेनं गोयामा, एवं वुक्काई भारहेवसम। बिल्कुल भी नहीं
- यह क्षेत्र भरत नाम के देवता की एक महारधिक महाद्युतिवंत, पल्योपमा स्थिति का निवास स्थान है। उसके
से इस क्षेत्र का नाम 'भारतवर्ष' प्रसिद्ध हुआ।
महापुराण
इसके बाद उन्होंने अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत को राजा के रूप में स्थापित किया
भगवान के सर्वोच्च व्यक्तित्व ने भरत के इस देश को अपने रक्षक के रूप में रखा आचार्य जिनसेन ।
- इसके बाद भगवान ऋषभनाथ ने अपने ज्येष्ठ पुत्र को ताज पहनाया और घोषणा की कि 'भारत से शासित क्षेत्र भारतवर्ष होना चाहिए'
'भारतवर्ष' को उन्होंने सनाथ किया।
फिर दोस्ती खुशी और प्यार से भर गई
उन्हें भरत को समस्त भारतवासियों का भावी स्वामी कहें उस नाम से, भारत देश ऐतिहासिक रूप से लोगों का स्थान था।
हिमालय से समुद्र तक यह है पहिएदारों का क्षेत्र (15.158-151) - पूरे भरत क्षेत्र के उस भावी शासक को सामू ने, जो उसे अत्यधिक प्यार करता था, 'भारत' के रूप में संबोधित किया था। वह 'भारत' नाम हिमालय से समुद्र तक- या चक्रवर्ती का क्षेत्र दुनिया में 'भारतवर्ष' के रूप में प्रसिद्ध हुआ। पुरुदेवचम्पू
उस नाम से, भारत देश ऐतिहासिक रूप से लोगों का स्थान था। यह हिमालय के समुद्र से पहिएदारों का क्षेत्र है|
- उनके नाम से (भरत के नाम से) यह देश 'भारतवर्ष' प्रसिद्ध हुआ ऐसा इतिहास हैं। हिमवान् कुलाच
से लेकर लवणसमुद्र तक का यह क्षेत्र 'चक्रवर्तियों का क्षेत्र' कहलाता है।
याचिका मार्गदर्शक
• पूर्व न्यायाधीश राजस्थान २३, मौजा कॉलोनी, मालवे नगर, भारत-३०२०१७
श्री. पनचंद जैन
जयपुर, राजस्थान,
याचिकाकर्ता
बिजय कुमार जैन मैं भारत हूँ फाउंडेशन
राष्ट्रीय अध्यक्ष
वरिष्ठ पत्रकार व संपादक
बी- २१७, हिन्द सौराष्ट्र इण्डस्ट्रीयल इस्टेट, मरोल, अंधेरी पूर्व, मुम्बई, महाराष्ट्र,
fmd_good B-217,Hind Saurashtra Industrial Estate, Marol, Andheri East, Mumbai, Maharashtra, 400059
account_balance Any Other