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॥श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय नमः ।।

 

राजस्थान के प्राचीनतम अतिशय क्षेत्रों में भुसावर का महत्वपूर्ण स्थान है। यह क्षेत्र जयपुर-आगरा के मध्य महवा से 20 किलोमीटर व छोकरबाड़ा से 7 किलोमीटर दूरी पर तथा भरतपुर रेलवे स्टेशन से 60 किलोमीटर व बयाना स्टेशन से 30 किलोमीटर व श्रीमहावीरजी से 60 किलोमीटर की दूरी तथा मथुराचौरासी से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

 

यहां पर भगवान आदिनाथ की 1500 सौ वर्ष पुरानी प्रतिमाजी भूमिगत भोहरे में विराजमान है। जो साक्षात् आदमकद भगवान आदिनाथ का भव्य स्वरूप है। इनके दर्शन के पश्चात ऐसा भाव होता है कि भगवान आदिनाथ यहां पर सजीव रूप में विराजमान हैं। यहां पर और भी प्राचीन प्रतिमाएं विराजित हैं जो कि मुगलकाल से प्राचीन हैं।

 

भगवान आदिनाथ की पद्मासन विराजित प्रतिमाजी के दर्शन मात्र से असीम शान्ति मिलती है । वह कलाकार धन्य है। जिसके द्वारा इस प्रतिमाजी का निर्माण किया गया। कलाकार ने अपनी समस्त कला व अन्य शुद्ध भावों को इस प्रतिमाजी में समाहित कर दिया है। इस मूर्ति के दर्शन करके मन नहीं भरता जो भी एक बार दर्शन करता है उसे बार-बार दर्शन करने की इच्छा जाग्रत होती है। इस प्रतिमाजी के दर्शन मात्र से समस्त बाधाएं दूर होती हैं तथा मनोकामना पूर्ण होती है।

 

जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से भगवान आदिनाथ के दरबार में कार्य सिद्धि हेतु मनोकामना लेकर आते हैं उनकी मनोकामना पूर्ण होती है। प्रतिमाजी को गौर से दर्शन करने पर आपको कई शुभ मांगलिक चिन्ह प्रतिमाजी पर प्रकट होते हुए दिखाई देते हैं। यहां पर दूर-दूर से यात्री अपनी मनोकामना लेकर दर्शन हेतु आते हैं और उनकी मनोकामना पूर्ण होती है।

 

यहां पर बार-बार अतिशय होते रहते हैं व कई दर्शनार्थियों को समय-समय पर दिखाई देते हैं।

 

पूर्व में यह मंदिर प्राचीनकाल से निर्मित कई मंजिलों में था। मंदिर जी के नीचे भव्य मंदिर जो कि टीले के रूप में है आज भी उसके अवशेष मंदिर जी में विद्यमान हैं। यहां पर मंदिर जी से कुछ ही दूरी पर देहरा नाम का स्थान है जहां आज भी खोदने पर हमारी प्राचीन धरोहर मूर्तियां मिलती है। यहां से खुदाई में मिली कुछ मूर्तियांम्यूजियम भरतपुर में विराजित हैं। इतिहास में मंदिर जी के नीचे ऐसा बताया जाता है कि एक बड़ा भव्य मंदिर था जो कि इस टीले के नीचे उपस्थित है। खुदाई में अभी भी इसके अवशेष मिलते है।

 

यहां पर अब एक भव्य विशाल मंदिर जी का निर्माण चल रहा है। जिसको दिव्य रूपदेने के लिए आपसे सहयोग अपेक्षित है। * यहां पर विराजित क्षेत्रपाल बाबा बड़े ही अतिशयकारी हैं जो दर्शनार्थियों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं। * यहां पर प्राचीनकाल से देवों का आवागमन होता रहता है। * यहां पर ऊपरी बाधा के रोगी स्वत: ही ठीक होते देखे गये हैं तथा हजारों रोगी इसका लाभ ले चुके हैं। । अतः सभी धर्मप्रेमी बंधुओं से निवेदन है कि यहां आवश्यक रूप से पधारकर भगवान आदिनाथ के दर्शन कर पूण्य लाभ लें। तथा तन-मन-धन से सहयोग देकर मंदिर निर्माण में सहयोगी बनें व जैन धर्म की पताका को और ऊंचा करने में सहयोग प्रदान कर पुण्यार्जन प्राप्त करें।

 

यहां पर जो भी साध भगवन्त दर्शन करते हैं उन्हें यह प्रतिमाजी अति मनोहारी व अतिशयकारी तथा अलौकिक लगती है।

॥श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय नमः ।।

 

राजस्थान के प्राचीनतम अतिशय क्षेत्रों में भुसावर का महत्वपूर्ण स्थान है। यह क्षेत्र जयपुर-आगरा के मध्य महवा से 20 किलोमीटर व छोकरबाड़ा से 7 किलोमीटर दूरी पर तथा भरतपुर रेलवे स्टेशन से 60 किलोमीटर व बयाना स्टेशन से 30 किलोमीटर व श्रीमहावीरजी से 60 किलोमीटर की दूरी तथा मथुराचौरासी से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

 

यहां पर भगवान आदिनाथ की 1500 सौ वर्ष पुरानी प्रतिमाजी भूमिगत भोहरे में विराजमान है। जो साक्षात् आदमकद भगवान आदिनाथ का भव्य स्वरूप है। इनके दर्शन के पश्चात ऐसा भाव होता है कि भगवान आदिनाथ यहां पर सजीव रूप में विराजमान हैं। यहां पर और भी प्राचीन प्रतिमाएं विराजित हैं जो कि मुगलकाल से प्राचीन हैं।

 

भगवान आदिनाथ की पद्मासन विराजित प्रतिमाजी के दर्शन मात्र से असीम शान्ति मिलती है । वह कलाकार धन्य है। जिसके द्वारा इस प्रतिमाजी का निर्माण किया गया। कलाकार ने अपनी समस्त कला व अन्य शुद्ध भावों को इस प्रतिमाजी में समाहित कर दिया है। इस मूर्ति के दर्शन करके मन नहीं भरता जो भी एक बार दर्शन करता है उसे बार-बार दर्शन करने की इच्छा जाग्रत होती है। इस प्रतिमाजी के दर्शन मात्र से समस्त बाधाएं दूर होती हैं तथा मनोकामना पूर्ण होती है।

 

जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से भगवान आदिनाथ के दरबार में कार्य सिद्धि हेतु मनोकामना लेकर आते हैं उनकी मनोकामना पूर्ण होती है। प्रतिमाजी को गौर से दर्शन करने पर आपको कई शुभ मांगलिक चिन्ह प्रतिमाजी पर प्रकट होते हुए दिखाई देते हैं। यहां पर दूर-दूर से यात्री अपनी मनोकामना लेकर दर्शन हेतु आते हैं और उनकी मनोकामना पूर्ण होती है।

 

यहां पर बार-बार अतिशय होते रहते हैं व कई दर्शनार्थियों को समय-समय पर दिखाई देते हैं।

 

पूर्व में यह मंदिर प्राचीनकाल से निर्मित कई मंजिलों में था। मंदिर जी के नीचे भव्य मंदिर जो कि टीले के रूप में है आज भी उसके अवशेष मंदिर जी में विद्यमान हैं। यहां पर मंदिर जी से कुछ ही दूरी पर देहरा नाम का स्थान है जहां आज भी खोदने पर हमारी प्राचीन धरोहर मूर्तियां मिलती है। यहां से खुदाई में मिली कुछ मूर्तियांम्यूजियम भरतपुर में विराजित हैं। इतिहास में मंदिर जी के नीचे ऐसा बताया जाता है कि एक बड़ा भव्य मंदिर था जो कि इस टीले के नीचे उपस्थित है। खुदाई में अभी भी इसके अवशेष मिलते है।

 

यहां पर अब एक भव्य विशाल मंदिर जी का निर्माण चल रहा है। जिसको दिव्य रूपदेने के लिए आपसे सहयोग अपेक्षित है। * यहां पर विराजित क्षेत्रपाल बाबा बड़े ही अतिशयकारी हैं जो दर्शनार्थियों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं। * यहां पर प्राचीनकाल से देवों का आवागमन होता रहता है। * यहां पर ऊपरी बाधा के रोगी स्वत: ही ठीक होते देखे गये हैं तथा हजारों रोगी इसका लाभ ले चुके हैं। । अतः सभी धर्मप्रेमी बंधुओं से निवेदन है कि यहां आवश्यक रूप से पधारकर भगवान आदिनाथ के दर्शन कर पूण्य लाभ लें। तथा तन-मन-धन से सहयोग देकर मंदिर निर्माण में सहयोगी बनें व जैन धर्म की पताका को और ऊंचा करने में सहयोग प्रदान कर पुण्यार्जन प्राप्त करें।

 

यहां पर जो भी साध भगवन्त दर्शन करते हैं उन्हें यह प्रतिमाजी अति मनोहारी व अतिशयकारी तथा अलौकिक लगती है।


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