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अरावली पर्वत की तराई में हरियाली से भरपूर नोमा व सुखडी नदी या बडी नदी के मध्य व जोधपुर उदयपुर मेगा हाईवे क्र. १६ की मुख्य सडक पर स्थित है देसुरी अर्थात प्राचीन देवसुरी नगर। मारवाड व मेवाड को जोडने वाला ऐतिहासिक गावं ,वीरों व संतों का गांव, जोधपुर डिवीजन व पाली जिले में गोडवाड का प्रथम गांव देवसुरी इतिहास प्रसिद्ध राठौड व राणाओं का आधिपत्यवाला गांव रहा।
देसुरी गांव का नाम ‘देवसुरी’ था, जिसका प्रमाण जैन पेढी पर अंकित है। ‘श्री ॠषभदेव भगवान जैन पेढी देवसुरी एवं पंचायत
 भवन’ नाम था। भगवान के
तिगडे पर भी लेख में देवसुरी गांव अंकित है। कालक्रम में यह अपभ्रंश होकर देसुरी हो गया।  यहां कुल चार जैन मंदिर हैं। सभी संप्रतिकालीन हैं।

श्री विमलनाथ मंदिर :
देरों की वास में प्रभु शांतिनाथजी मंदिर व श्री पोरवाल जैन संघ, देसुरी पेढी के ठीक सामने जीर्णोद्धारित नूतन जिन मंदिर में श्री विमलनाथ प्रभु की सुंदर परिकर सह मनमोहक प्रतिमा विराजमान है। जैन तीर्थ सर्वसंग्रह के अनुसार, वि. स. १९५५ के लगभग, मूलनायक श्री चिंतामणि पाशर्वनाथ प्रभु की प्रतिमा इस जिनालय में विराजमान थी, जो वर्तमान में प्राचीन तिगडे सह रंगमंडप के एक देहरी में प्रतिष्ठित है। वि. स. २०११ (वीर स. २४८१) के माघ सुदि १० को आ. श्री जिनेन्द्रसूरिजी ने संपूर्ण जीर्णोद्धार करवा के नूतन मंदिर की प्रतिष्ठा की थी व मूलनायक के रूप में प्रभु श्री विमलनाथजी को विराजमान किया। स. २०६६ में दीक्षादानेश्वरी आ. श्री गुणरत्नसूरिजी की प्रेरणा पाकर श्री संघ ने जिनालय का सामूल जीर्णोद्धार करवाकर वि. स. २०६९ के वैशाख सुदि ६ गुरुवार दि. १६.०५.२०१३को भव्य महोत्सव पूर्वक अंजनशलाका प्रतिष्ठा संपन्न करवाई। इसके पूर्व में स. २०६६ जेठ वदि १ दि. २८.०५.२०१० को भूमिपूजन तथा आषाढ वदि ६, शुक्रवार, दि. २.७.२०१० को शिलान्यास संपन्न हुआ था। मंदिर के ठीक सामने पेढी व धर्मशाला व भोजनशाला व आयंबिल भवन है, जिसका वहीवाट श्री पोरवाल जैन संघ पेढी देखती है|



 

अरावली पर्वत की तराई में हरियाली से भरपूर नोमा व सुखडी नदी या बडी नदी के मध्य व जोधपुर उदयपुर मेगा हाईवे क्र. १६ की मुख्य सडक पर स्थित है देसुरी अर्थात प्राचीन देवसुरी नगर। मारवाड व मेवाड को जोडने वाला ऐतिहासिक गावं ,वीरों व संतों का गांव, जोधपुर डिवीजन व पाली जिले में गोडवाड का प्रथम गांव देवसुरी इतिहास प्रसिद्ध राठौड व राणाओं का आधिपत्यवाला गांव रहा। देसुरी गांव का नाम देवसुरीथा, जिसका प्रमाण जैन पेढी पर अंकित है। श्री ॠषभदेव भगवान जैन पेढी देवसुरी एवं पंचायत भवन नाम था। भगवान के तिगडे पर भी लेख में देवसुरी गांव अंकित है। कालक्रम में यह अपभ्रंश होकर देसुरी हो गया।यहां कुल चार जैन मंदिर हैं। सभी संप्रतिकालीन हैं। श्री विमलनाथ मंदिर देरों की वास में प्रभु शांतिनाथजी मंदिर व श्री पोरवाल जैन संघ, देसुरी पेढी के ठीक सामने जीर्णोद्धारित नूतन जिन मंदिर में श्री विमलनाथ प्रभु की सुंदर परिकर सह मनमोहक प्रतिमा विराजमान है। जैन तीर्थ सर्वसंग्रह के अनुसार, वि. स. १९५५ के लगभग, मूलनायक श्री चिंतामणि पाशर्वनाथ प्रभु की प्रतिमा इस जिनालय में विराजमान थी, जो वर्तमान में प्राचीन तिगडे सह रंगमंडप के एक देहरी में प्रतिष्ठित है। वि. स. २०११ (वीर स. २४८१) के माघ सुदि १० को आ. श्री जिनेन्द्रसूरिजी ने संपूर्ण जीर्णोद्धार करवा के नूतन मंदिर की प्रतिष्ठा की थी व मूलनायक के रूप में प्रभु श्री विमलनाथजी को विराजमान किया। स. २०६६ में दीक्षादानेश्वरी आ. श्री गुणरत्नसूरिजी की प्रेरणा पाकर श्री संघ ने जिनालय का सामूल जीर्णोद्धार करवाकर वि. स. २०६९ के वैशाख सुदि ६ गुरुवार दि. १६.०५.२०१३को भव्य महोत्सव पूर्वक अंजनशलाका प्रतिष्ठा संपन्न करवाई। इसके पूर्व में स. २०६६ जेठ वदि १ दि. २८.०५.२०१० को भूमिपूजन तथा आषाढ वदि ६, शुक्रवार, दि. २.७.२०१० को शिलान्यास संपन्न हुआ था। मंदिर के ठीक सामने पेढी व धर्मशाला व भोजनशाला व आयंबिल भवन है, जिसका वहीवाट श्री पोरवाल जैन संघ पेढी देखती है

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