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~~~Shri Kangra Jain Shvetambara Tirtha~~~

 

Dedicated to Lord Adinath, it is a 5000 years old ancient Jain pilgrimage centre. It is often referred to as the 'Shatrunjaya of North India'. and 'Mini Shatrunjay' Known as.

 

Kangra is a hill station in Himachal Pradesh. Shree Kangra Jain Shvetambara Tirtha is about 5000 years old, a glorious pilgrimage of the time of 22nd Tirthankar Parmatma Neminath ji. Nestled in the lap of nature, this pilgrimage was established by Chandravanshiya Maharaja Susharmachandra around the time of Mahabharata.

 

At one point of time this area was quite prosperous. There were many Jin temples here and there were also a large number of Jains. But later due to some reasons, such as due to the earthquake around 1905 and due to the political situation, the temples here went on disappearing. The remains of Jain temples in Kangra Fort tell the story of the glorious history of Jainism here. This pilgrimage, once at the height of its fame, was forgotten due to the slaps of the period.

 

Muni Shri Jin Vijay ji learned about the history of this ancient pilgrimage and made a detailed search for it while doing the revision work of the Granth Bhandaras of Patan (Gujarat). The efforts of Acharya Shri Vijay Vallabh Surishwar Ji Maharaj and Acharya Shri Vijay Samudra Surishwar Ji Maharaj strengthened the efforts of the revival of this pilgrimage. With his inspiration, Sadhvi Mrigavati Shri ji took up the task of reviving this pilgrimage.

 

At present, only the 39.5 inch high Jatadhari statue of the first Tirthankara Shri Adinath Bhagwan is visible here. This statue is very eye-pleasing and unique. For a time this statue remained in a small room in the huge fort of Kangra and this place was in the possession of the government. The local people used to call this statue as Bhairav Dev and used to worship it by offering oil and vermilion. As a result of Sadhvi Shri Mrigavati Ji's untiring efforts, her morale, tapobal and chanting power, the Jains got the right to worship this statue in the Jain method in the year 1978.

 

A plot was acquired by the Jain Shvetambara Samaj near the foothills of the Kangra Fort, where well-equipped Dharamshala, Bhojanshala and new Jinmandir were constructed. In this Jinmandir of the foothills, the original leader is the first Tirthankar Adinath Bhagwan, whose idol is 500 years old and came from the world-famous Ranakpur pilgrimage. The consecration of this temple was completed in 1990 under the guidance of Acharya Shri Vijay Indradin Surishwar Ji Maharaj.

 

This pilgrimage is in a very quiet, secluded and delightful place. Situated in the valley of Kangra, on the banks of river Kal Kalti, surrounded by beautiful hills, this pilgrimage is a favorable place for meditation and chanting.

 

Every year a fair is held here on the festival of Holi.

 

To reach the shrine: This shrine is easily accessible by road. This shrine is at a distance of 100 km from Hoshiarpur (Punjab), 170 km from Ludhiana, 143 km from Jalandhar and 90 km from Pathankot.

 

 

~~~श्री कांगड़ा जैन श्वेताम्बर तीर्थ~~~

 

भगवान आदिनाथ को समर्पित, यह 5000 साल पुराना प्राचीन जैन तीर्थस्थल है। इसे अक्सर 'उत्तर भारत के शत्रुंजय' और 'मिनी शत्रुंजय' के रूप में जाना जाता है।

 

काँगड़ा, हिमाचल प्रदेश का एक पर्वतीय मनोरम स्थान है। श्री कांगड़ा जैन श्वेताम्बर तीर्थ लगभग 5000 वर्ष प्राचीन, 22वें तीर्थंकर परमात्मा नेमिनाथ जी के समय का महिमावंत तीर्थ है। प्रकृति की गोद में बसे इस तीर्थ की स्थापना चंद्रवंशीय महाराजा सुशर्मचंद्र ने महाभारत के समय के आसपास करवाई थी।

 

किसी समय में यह क्षेत्र काफी समृद्ध था। यहाँ कई जिन मंदिर थे व विपुल संख्या में जैन धर्मावलंबी भी थे। पर कालांतर में किन्हीं कारणों से, जैसे सन् 1905 के आसपास आये भूकंप व राजकीय स्तिथि के कारण से भी यहाँ के मंदिर लोप होते चले गए। काँगड़ा किले में जैन मंदिरों के अवशेष यहाँ पर जैन धर्म के गौरवशाली इतिहास की दास्ताँ बयान करते हैं। किसी समय अपनी प्रसिद्धि के शिखर पर रहा यह तीर्थ काल के थपेड़ों की वजह से विस्मृत हो गया था।

 

मुनि श्री जिन विजय जी ने पाटण (गुजरात) के ग्रन्थ भण्डारों का संशोधन कार्य करते हुए इस प्राचीन तीर्थ के इतिहास के बारे में जाना और इसकी विस्तृत खोज की। आचार्य श्री विजय वल्लभ सुरिश्वर जी महाराज और आचार्य श्री विजय समुद्र सुरिश्वर जी महाराज के प्रयत्नों से इस तीर्थ के पुनरुद्धार के प्रयासों को बल मिला। इन्हीं की प्रेरणा से साध्वी मृगावती श्री जी ने इस तीर्थ को पुनः जीवंत करने का बीड़ा उठाया।

 

वर्तमान में यहाँ केवल प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान की श्याम वर्ण की 39.5 इंच ऊंची जटाधारी प्रतिमा ही दृष्टिगोचर होती है। यह प्रतिमा अत्यंत नेत्रानंदकारी और अद्वित्य है। एक समय तक यह प्रतिमा काँगड़ा के विशाल किले में एक छोटे से कमरे में रही व यह स्थान सरकार के कब्ज़े में था। स्थानीय लोग इस प्रतिमा को भैरव देव कह कर पुकारते थे व तेल और सिन्दूर चढ़ा कर इसकी पूजा अर्चना करते थे। साध्वी श्री मृगावती जी के अनथक प्रयासों, उनके मनोबल, तपोबल और जप-बल के परिणामस्वरूप इस प्रतिमा की जैन पद्धति से पूजा सेवा करने का अधिकार जैनों को सन् 1978 में मिला।

 

काँगड़ा किले की तलहटी के पास ही जैन श्वेताम्बर समाज द्वारा एक भूखंड प्राप्त किया गया, जहाँ पर सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला, भोजनशाला व नूतन जिनमंदिर का निर्माण किया गया। तलहटी के इस जिनमंदिर में मूलनायक परमात्मा प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान हैं, जिनकी प्रतिमा 500 वर्ष प्राचीन है व विश्वप्रसिद्ध राणकपुर तीर्थ से आई है। इस मंदिर की प्रतिष्ठा आचार्य श्री विजय इंद्रदिन्न सुरिश्वर जी महाराज की निश्रा में सन् 1990 में संपन्न हुई।

 

यह तीर्थ अत्यंत शांत, एकांत व् रमणीय स्थान पर है। सौन्दर्यमण्डित पहाड़ियों से घिरे, कल कल करती नदी के किनारे, काँगड़ा की घाटी में स्थित यह तीर्थ ध्यान-साधना और जप-तप के लिए अनुकूल स्थान है।

 

हर वर्ष होली के त्यौहार पर यहाँ मेला लगता है।

 

तीर्थ पर पहुंचने के लिए: इस तीर्थ पर सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। यह तीर्थ होशियारपुर (पंजाब) से 100 कि०मी० की दूरी पर है, लुधियाना से 170 कि०मी०, जालंधर से 143 कि०मी० और पठानकोट से 90 कि०मी० दूर है।

 


fmd_good Old Kangra, Opposite Kangra Fort, Kangra, Himachal Pradesh, 176001

account_balance Shwetamber Temple


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