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The ancient pilgrimage of Nana village is considered to be the most important among all the Jain pilgrimages of the Godwad region because according to the belief of the Jain society, the idol of Moolnayak was established in this Jain temple during the lifetime of Lord Mahavir, so this temple is dedicated to the living Swami. It is famous by its name, the proof of which is also found in this Lokvani -
‘‘Nana-Diana-Nadia, living Swami Vandiya.’’
Dand, Ida and re-establishment of this temple in Vikram Samvat Jeth Vad 6, 1978 Sh. Hazarimalji was accomplished by Jaganathji and Devichandji Tarchandji Vitra.

Moolnayak: About 120 cms. There is a living statue of Lord Shri Mahaveer Swami, white-skinned in Padmasan posture! The soul gets peace and happiness only by seeing the charming statue of the wonderful, stunning Veer Prabhu!

Tirth: This Tirth is in Nana village! 

             Historicity
Where even a miracle comes and bows its head, such a holy pilgrimage, such a wonderful grandfather's statue! The holy land here has become blessed by the touch of the feet of the brave Lord! Chandkoshik was made a star, Gwale was raised, Indrabhuti was made Gautam..... We are also blessed to see the statue of Jeevanswami, the savior of many souls! It is believed that this Jinalaya ji is of the contemporary time of Shri Mahavir Bhagwan, " Nana, Diyana, Nandia, Jivitswami Vandiya"
This proverb is famous.  This means that Nana , Diyana  And Nandiya, Jivit Swami means when the Lord was alive, he was removing the sorrows of the world with his speech, showering the divine stream of happiness, then this idol is established here.
V.No. Inscriptions found at Jinalaya ji during 1017 and 1659 make it clear that the place must have been a large city full of prosperity for centuries.  However, it is difficult to know exactly when Nanavasa was founded. Statue Contemporary  The Sri Mahaveer Bhagwan may have been replaced during one of the many renovations done here from time to time, as there is an inscription on the present idol in the Jinalaya ji, Saturday. Magh Krishna 9 is found in Vikram year 1505, which states that the idol was installed on that day by the hands of Shri Shantisuriswarji. This is the place where Nanak Gachchha was established and references indicate that Gachchha was established in the 12th Vikrami
Started before the turn of the century. It is one of the pilgrimages of Bamanwadaji Panch Teerth. The village of Nana was gifted by Amarsingh Mayveer Raja to Sri Narayan Mutha, one of the successors of Sri Sri Tribhuvan Narayan and the temple is dedicated to "Sahrao". A device for drawing water from a well was also presented. At that time in Vikram year 1659, Acharya Shantisuriji established Bhadrapada Shukla 7. This aqueduct is still under the control and authority of the Jain community. There is another Jinalaya Ji in the surrounding area. The idol here looks adorable and smiling which instantly captivates anyone's heart. The arches around the idol are particularly worth seeing. There is also a stone plaque, located at the Nandishvara gate, with an inscription dated Vikram year 1274.

Praise :
O living Lord, revive my soul, 
To give strength and wisdom to live in this period,
We have to go on the path of salvation while doing penance, 
Oh living God, by worshiping you, we have to attain liberation and happiness...

Guidelines: Nearest railway station to Nana is 2.5 kms from Jinalaya Ji where autos and taxis are available.  Nana is 25 kms away from Bamanwadji! Can be reached via Sirohi-Pindwara Road.

Facilities-::- There is also a Dharamshala and Bhojanshala to stay with all facilities.

 

 

गोड़वाड़ क्षेत्र के समस्त जैन तीर्थों में नाणा गाँव का प्राचीन तीर्थ सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि जैन समाज की मान्यता के अनुसार इस जैन मंदिर में मूलनायक की प्रतिमा की स्थापना भगवान महावीर के जीवनकाल में ही हुई थी अतः यह मंदिर जीवित स्वामी के नाम से ही प्रसिद्ध है जिसका प्रमाण इस लोकवाणी से भी मिलता है -
‘‘नाणा-दियाणा-नादिया, जीवित स्वामी वांदिया।’’
इस मंदिरजी का डंड, इड़ा और पुनः प्रतिष्ठा विक्रम संवत जेठ वद ६, १९७८ में शा. हज़ारीमलजी जगनाथजी और देवीचंदजी तारचंदजी वीतरा द्वारा संपन्न हुई थी.

मूलनायक : लगभग 120से.मी. पद्मासन मुद्रा में श्वेतवर्णीय श्री महावीर स्वामी भगवान की जीवित प्रतिमाजी है! अद्भुत , तेजस्वी वीर प्रभु की मनमोहक प्रतिमाजी के दर्शन करने से ही आत्मा को शांति सुख मिलता है!

तीर्थ : यह तीर्थ नाणा गाँव में है! 

             एतिहासिकता
जहा चमत्कार भी आकर अपना मस्तक झुकाता है , ऐसा पावन तीर्थ , ऐसी अद्भुत दादा की प्रतिमा जी है! यहा की पावन भुमि वीर प्रभु के चरणों की स्पर्शना से धन्य हो गयी हैं! चंडकोशिक को तारा , ग्वाले को उगारा , इन्द्रभुति को गौतम बनाया.....अनेकों आत्माओं के तारणहारा पालनहारा जीवंतस्वामी की प्रतिमा के दर्शन कर हमे भी धन्य होना है! ऐसा माना जाता है कि यह जिनालय जी श्री महावीर भगवान के समकालीन समय का है, " नाणा ,दियाणा , नांदिया , जीवितस्वामी वांदिया"
यह कहावत प्रसिद्ध है।  इसका मतलब है कि नाणा , दियाणा  और नांदिया , जीवित स्वामी मतलब जब प्रभु जीवंत थे अपनी वाणी से संसार के दुख हर रहे थे , सुख की दिव्य धारा बरसा रहे थे , तब की यह प्रतिमा जी यहा प्रतिष्ठित है।
वि.सं. 1017 और 1659 के दौरान जिनालय जी में पाए गए शिलालेख से यह स्पष्ट होता है कि यह स्थान सदियों से समृद्धि से भरा एक बड़ा शहर रहा होगा।  हालाँकि, वास्तव में नानावास की स्थापना हुई थी, यह जानना मुश्किल है। प्रतिमा समकालीन  श्री महावीर भगवान को समय-समय पर यहां किए गए कई नवीनीकरणों में से एक के दौरान प्रतिस्थापित किया गया हो सकता है ,क्योंकि जिनालय जी में वर्तमान प्रतिमा जी पर शनिवार का एक शिलालेख है। विक्रम वर्ष 1505 में माघ कृष्ण 9 पाया जाता है, जिसमें कहा गया है कि उस दिन प्रतिमा जी को श्री शांतिसूरीश्वरजी के हाथों स्थापित किया गया था। यह वह स्थान है जहाँ नानक गच्छ की स्थापना की गई थी और संदर्भ यह संकेत देते हैं कि गच्छ को 12 वीं विक्रमी
शताब्दी से पहले शुरू किया गया था। यह बामणवाडाजी पंच तीर्थ के तीर्थों में से एक है। नाणा के गाँव को अमरसिंह मायवीर राजा ने श्री नारायण मुथा, श्री श्री त्रिभुवन नारायण के उत्तराधिकारियों में से एक को उपहार के रूप में दिया था और मंदिर में "सहराव" नामक एक अच्छी तरह से पानी खींचने वाला उपकरण भी भेंट किया था। उस समय विक्रम वर्ष 1659 में आचार्य शान्तिसूरिजी ने भाद्रपद शुक्ला 7 की स्थापना की। यह जल खींचने का यंत्र अभी भी जैन समुदाय के नियंत्रण और अधिकार में है। आसपास के क्षेत्र में एक और जिनालय जी है। यहाँ की प्रतिमा जी मनमोहक और मुस्कुराती हुई दिखाई देती है जो तुरंत ही किसी का मन मोह लेती है। प्रतिमा जी के चारों ओर मेहराब विशेष रूप से देखने लायक हैं। यहाँ एक पत्थर की पट्टिका भी विद्यमान है, जो नंदीश्वर द्वार पर स्थित है, जिस पर विक्रम वर्ष 1274 का एक शिलालेख है।

स्तुति :
हे जीवंत प्रभु जी मेरी आत्मा को जीवंत करना , 
इस काल में रह सके ऐसे बल बुद्धि देना ,
तप साधना करते करते मोक्ष राह पर जाना है , 
हे जीवंत प्रभु जी तेरा पुजन कर मुक्ति सुख को पाना है...

मार्गदर्शन : नाणा का नजदीकी रेलवे स्टेशन जिनालय जी से 2.5 किलोमीटर दूर है जहाँ ऑटो और टैक्सी उपलब्ध हैं।  बामनवाडजी से नाणा 25 किलोमीटर दूर है! सिरोही-पिंडवाड़ा रोड के माध्यम से पहुंचा जा सकता है।

सुविधाएँ-::- सभी सुविधाओं के साथ ठहरने के लिए यहाँ एक धर्मशाला एवम् भोजनशाला भी है|

 


fmd_good Bali, Pali, Rajasthan, 306504

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