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Shri Haribhadrasuri Memorial Temple
In view of the great contribution of Acharya Haribhadrasuri ji, the author of 1444 texts, the great scholar of all three philosophies, Padmashree Muni Jin Vijay ji built his memory temple with his self-acquired capital as a form of reverence. Its reputation is Magh Shukla 13 No. 2029 accordingly. On 15.2.73 Acharya Shri Udaysagarji M. Like. was born in sleep.
It is a four storeyed temple in which there is a shelter and knowledge store on the first floor. 41'' of Shri Haribhadrasuri ji on the second floor. Along with the grand statue of her Dharma Mata Sadhvi Shri Yakini Mahattara, Shri Jinbhadrasuri, Shri Jindattasuri, Shri Veerabhadrasuri and Shri Jinbhadrasuri have the idols. There are statues of Shri Jineshwar Suri and Shri Abhay Dev Suri on both sides. On the way out, later there are the idols of the iconic Kala Bhairav and Goya Bhairav ji. Among other deities, there are idols of Shri Siddhasen Diwakar, Shri Jinvallabhsuri and Shri Jindattasuri, Shri Siddarshi, Shri Udyotansuri and Shri Punyavijay ji. Muni Shri Jinvijay ji is also shown worshiping at the feet of Acharya Shri Haribhadra Suri. In this way, Muni Shri Jinvijay ji has donated sandalwood as a tribute to not only Acharya Shri Haribhadrasuri but also to all those Acharyas and Sadhvis who have given immense contribution to Jainism by staying in Chittorgarh. Lord idols are placed on the upper floor, Moolnayak is Sri Sri Parshvanath Bhagwan.

 

श्री हरिभद्रसूरि स्मृति मंदिर
1444 ग्रंथों के रचयिता जैन, वैदिक एवं बौद्ध तीनों दर्शनों के प्रकाण्ड विद्वान आचार्य हरिभद्रसूरि जी के महान अवदान को देखते हुए श्रद्धा स्वरूप उनका स्मृति मंदिर पद्मश्री मुनि जिन विजय जी ने अपनी स्व अर्जित पूंजी से निर्मित करवाया। इसकी प्रतिष्ठा माघ शुक्ला 13 सं. 2029 तदनुसार दि. 15.2.73 को आचार्य श्री उदयसागरजी म. सा. की निश्रा में हुई थी।
यह चार मंजिला मंदिर है जिसमें प्रथम मंजिल पर उपाश्रय व ज्ञान भंडार है। द्वितीय मंजिल पर श्री हरिभद्रसूरि जी की 41'' की भव्य प्रतिमा के साथ उनकी धर्म माता साध्वी श्री याकिनी महत्तरा, श्री जिनभद्रसूरि, श्री जिनदत्तसूरि, श्री वीरभद्रसूरि एवं श्री जिनभद्रसूरि की प्रतिमाएँ है। दोनों तरफ श्री जिनेश्वर सूरि एवं श्री अभय देव सूरि की प्रतिमाएँ है। बाहर निकलते समय बाद में प्रतिष्ठित काला भैरव एवं गोय भैरव जी की प्रतिमाएँ है। अन्य देवरियों में श्री सिद्धसेन दिवाकर, श्री जिनवल्लभसूरि एवं श्री जिनदत्तसूरि, श्री सिद्धर्षि, श्री उद्योतनसूरि एवं श्री पुण्यविजय जी की प्रतिमाएँ है। मुनि श्री जिनविजय जी भी आचार्य श्री हरिभद्र सूरि के चरणों में वन्दन करते हुए दर्शाए गये है। इस तरह मुनि श्री जिनविजय जी ने न सिर्फ आचार्य श्री हरिभद्रसूरि बल्कि उन सभी आचार्यो एवं साध्वियों को श्रद्धास्वरूप चंदन किया है जिन्होंने चित्तौड़गढ़ में रहकर जैन धर्म को अथाह अवदान दिया है। उपरी मंजिल पर प्रभु प्रतिमाएँ विराजित है, मूलनायक श्री श्री पार्श्वनाथ भगवान है |

 


fmd_good Gandhi Nagar, Chittaurgarh, Rajasthan, 312001

account_balance Shwetamber Temple

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