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In the holy chain of pilgrimages of Malwa and Bundelkhand, there are 26 temples situated in the lap of the Vindhyachal mountain range between these couple of rivers Urvashi and Leelat, the priceless heritage of Digambar Jain culture. Is. The temples here have grand and enthralling idols. The detached and mesmerizing image of these idols fills the heart of the visitor with devotion.

This holy pilgrimage was originated in the 12th century by the history famous Shresthi Padashah. There is a lake named Thubon adjacent to the south side of the area named after Padshah. Which is called Padashah Talaiya. There is a legend related to this that the Paras Pathri was near the Paras Shah. By touching it, they used to turn iron into gold. He got this Paras stone from this pond. Once the Parashah's pada entered this pool, his iron chain was converted into gold by the touch of the Paras Pathri. After getting the Paras Pathri, he put his money to good use. The temples that were built everywhere. Got grand statues constructed, got established. In which the temples and statues built by him in pilgrimage areas like Shri Thubon ji, Shri Bajrangarh, Shri Aahar ji, Shri Sironji, Ishurwara, Sesai, Deogarh etc. are direct proofs of his charity and devotion to Jinendra.

Atishay Tirtha Kshetra Thubon ji's temples in which the idols of Vitaragata sitting are not only exaggerated, they are also exaggerated, many legends are prevalent in relation to the 28 feet huge Khadgaasan statue of Lord Adinath in temple number 15. When this statue was ready, hundreds of people tried to erect it, but the statue did not even move, then the same night the man who consecrated it had a dream that you bathe in Prasuk water in the morning and wear clean clothes, worship God with devotion. Trying to erect this statue after retiring, that gentleman did the same in the morning, the present community saw with amazement and fascination that a single person erected a huge statue 28 feet high.

The religious people living in the area still hear the melodious sound of musical instruments and bells ringing from this Jinmandir at midnight. They believe that Devgans come here to worship the Lord.

Hon'ble Saint Shiromani Acharya Shri Vidya Sagar Ji Maharaj Sangh's 2 Chaturmas in the years 1979 and 1987 were completed with great religious influence. Shri Adinath Jinalaya was given a grand look with your inspiration and blessings. This area is famous as Tapovan. Many sages have done penance here. Even today, the entire atmosphere of the region is conducive to austerity.

The area is slowly moving towards development. For the development of the area, from time to time, the Management Committee continued to receive guidance and blessings from Param Pujya Acharya Shri Vidyasagar Ji Maharaj and his own Sanghastha disciples and his own disciple, Bal Brahmachari Pradeep Bhaiya "Suyash". Committed to the development of the region under the able guidance of. A grand fair and aircraft festival is organized every year on Makarsankranti in the area.

The area is 32 kms from Ashoknagar, 22 kms from Chanderi and 57 kms from Lalitpur. With the inspiration of Param Pujya Munipungav Shri Sudhasagar Ji Maharaj Sangh, Abhishek Shantidhara is done daily at 7:30 am in the area, in which buses and jeeps from Ashoknagar, Piprai, Mungavali go to the area at 6 am.

मालवा और बुंदेलखंड की पावन तीर्थ श्रंखला में उर्वशी और लीलट इन युगल सरिताओं के मध्य विंध्यांचल पर्वत माला की गोद में बसे २६ जिन मंदिरों का वैभव समेटे दिगंबर जैन संस्कृति की अमूल्य विरासत धर्म तीर्थ अतिशय क्षेत्र श्री थूबोन जी संपूर्ण मध्य प्रदेश का गौरवस्थल है। यहां के जिन मंदिरों में भव्य एवं चित्ताकर्षक जिन प्रतिमाएं विराजमान हैं। इन जिनप्रतिमाओं की वीतराग एवं मनोज्ञ छवि दर्शनार्थी के हृदय को भक्ति रस से ओतप्रोत कर देती हैं।

इस पवित्र तीर्थ का उद्भव १२ वी शताब्दी में इतिहास प्रसिद्ध श्रेष्ठि पाड़ाशाह के द्वारा हुआ था। पाड़ाशाह के नाम पर क्षेत्र के दक्षिण ओर थूबोन नाम से लगी हुई एक सरोवरी है। जिसे पाड़ाशाह तलैया कहते हैं। इसके संबंध में यह किवदंती जुडी है कि पाड़ाशाह के पास "पारस पथरी" थी जिसका स्पर्श करा कर लोहे से सोना बना लेते थे। यह पारस पथरी उन्हें इसी तलैया से प्राप्त हुई थी। एक बार पाड़ाशाह का पाड़ा इस तलैया में घुसा तो पारस पथरी के स्पर्श से उसकी लोहे की सांकल सोने में परिवर्तित हो गई। पारस पथरी मिलने के बाद उन्होंने अपने धन का सदुपयोग किया। जगह जगह जिन मंदिर बनवाये। भव्य प्रतिमाओं का निर्माण करवाया, प्रतिष्ठाये करायीं। जिनमें श्री थूबोन जी , श्री बजरंगढ़ , श्री आहार जी, श्री सिरोंजी, ईशुरवारा , सेसई , देवगढ़ आदि तीर्थ क्षेत्र में उनके द्वारा बनाये गए मंदिर व प्रतिमाएं उनकी दानशीलता और जिनेन्द्र भक्ति के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं.

अतिशय तीर्थक्षेत्र थूबोन जी के जिन मंदिरों में विराजमान भव्य जिन प्रतिमाएं वीतरागता की प्रतिमूर्ति तो हैं ही , वे अतिशयकारी भी हैं, मंदिर क्रमांक १५ में भगवान् आदिनाथ की २८ फुट उतंग विशाल खड्गासन प्रतिमा के सम्बन्ध में अनेक किवदंती प्रचलित हैं। यह प्रतिमा जब बनकर तैयार हुई तब सेकड़ो लोगों ने इसे खड़ी करने का प्रयत्न किया किन्तु प्रतिमा हिली तक नहीं, तब उसी रात्रि को प्रतिष्ठा कराने वाले सज्जन को स्वप्न आया की तुम प्रातः प्रासुक जल से स्नान करके स्वच्च्छ वस्त्र धारण कर भक्तिपूर्वक, देव पूजा से निवृत्त होकर इस प्रतिमा को खड़ा करने का प्रयत्न करना, प्रातः होने पर उस सज्जन ने वैसा ही किया , उपस्थित जन समुदाय ने विस्मय और विमुग्ध होकर देखा एक अकेले व्यक्ति ने २८ फुट ऊँची विशाल प्रतिमा खड़ी कर दी।

क्षेत्र में रहने वाले साधर्मी जान अभी भी मध्य रात्रि को इस जिनमंदिर से साज एवं घुंघरुओं के बजने की मधुर ध्वनि सुना करते हैं। उनका मानना है कि देवगण प्रभु की भक्ति करने के लिए यहां आया करते हैं।

परमपूज्य संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज ससंघ के सन १९७९ एवं १९८७ में २ चातुर्मास महती धर्म प्रभावना के साथ सम्पन्न हुए। आपकी प्रेरणा एवं आशीर्वाद से श्री आदिनाथ जिनालय को भव्य रूप प्रदान किया गया। यह क्षेत्र तपोवन के रूप में प्रसिद्ध है। यहां पर अनेक ऋषि मुनियों ने तपस्या की है। आज भी क्षेत्र का संपूर्ण वातावरण तपस्या के अनुकूल है।

क्षेत्र शनैः शनैः विकास की ऒर अग्रसर है। क्षेत्र के विकास हेतु प्रबंधकारिणी समिति समय समय पर परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज एवं उनके ही संघस्थ शिष्यों से मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद प्राप्त करती रही एवं उनके ही शिष्य बाल ब्रह्मचारी प्रदीप भैया जी "सुयश" के कुशल निर्देशन में क्षेत्र के विकास के लिए कटिबद्ध हैं। क्षेत्र पर प्रतिवर्ष मकरसंक्रांति को भव्य मेला एवं विमान उत्सव का आयोजन किया जाता है।

क्षेत्र अशोकनगर से ३२ किलोमीटर , चंदेरी से २२ किलोमीटर एवं ललितपुर से ५७ किलोमीटर की दूरी पर हे। क्षेत्र पर परम पूज्य मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ससंघ की प्रेरणा से प्रतिदिन अभिषेक शांतिधारा प्रातः ७:३० बजे की जाती है जिसमे अशोकनगर , पिपरई , मुंगावली से बस एवं जीप प्रातः ६ बजे क्षेत्र पर जाती है।


fmd_good Thobon, Chanderi, Ashoknagar, Madhya Pradesh, 473446

account_balance Digamber Temple

Contact Information

person Shri Ashok Jain

badge President

call 9425131994


person Shri Vipin Singhai

badge General Secretary

call 7999527790


person Shri Saurabh Banjhal

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call 9425191955

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