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ऐतिहासिकता : प्राचीनकाल में यह क्षेत्र 2 कि.मी. दूर पूर्णा नदी के तट पर बसा था। बाढ़ में मंदिर ढह गया, अतः सन् 1931 में यहाँ (नवागढ़) में मूर्तियाँ विधिवत स्थापित की गई जनश्रुति है कि नेमिनाथ की मूर्ति के चरणगुंष्ठ में पारसमणि थी। निज़ाम सरकार ने जब उसे लोभवश लेना चाहा तो वह स्वयं छिटक कर नदी में लुप्त हो गई।
विशेष जानकारी : नेमिनाथ जन्मोत्सव श्रावण शुक्ल 6, रथोत्सव माघ शुक्ल 5 से 7 तक धूमधाम से मनाया जाता है। वात्सल्यमूर्ति परम पूज्य श्री 108 आचार्य आर्य नन्दी महाराज का समाधिमरण माघ शुक्ल 2 दिनांक 7 फरवरी, 2000 को इसी क्षेत्र पर हुआ । उनकी पावन स्मृति में 43'x43' आकार के भव्य स्मारक है। क्षेत्र पर संचालित गुरुकुल में संगणक - 15, कलरप्रिंटर -3, स्केनर आदि आधुनिक सुविधायें उपलब्ध हैं।
समीपवर्ती तीर्थक्षेत्र - शिरड़शहापुर -50 कि.मी., नेमगिरि - 70 कि.मी., आसेगांव - 40 कि.मी., शेलगांव -50 कि.मी.

ऐतिहासिकता : प्राचीनकाल में यह क्षेत्र 2 कि.मी. दूर पूर्णा नदी के तट पर बसा था। बाढ़ में मंदिर ढह गया, अतः सन् 1931 में यहाँ (नवागढ़) में मूर्तियाँ विधिवत स्थापित की गई जनश्रुति है कि नेमिनाथ की मूर्ति के चरणगुंष्ठ में पारसमणि थी। निज़ाम सरकार ने जब उसे लोभवश लेना चाहा तो वह स्वयं छिटक कर नदी में लुप्त हो गई।
विशेष जानकारी : नेमिनाथ जन्मोत्सव श्रावण शुक्ल 6, रथोत्सव माघ शुक्ल 5 से 7 तक धूमधाम से मनाया जाता है। वात्सल्यमूर्ति परम पूज्य श्री 108 आचार्य आर्य नन्दी महाराज का समाधिमरण माघ शुक्ल 2 दिनांक 7 फरवरी, 2000 को इसी क्षेत्र पर हुआ । उनकी पावन स्मृति में 43'x43' आकार के भव्य स्मारक है। क्षेत्र पर संचालित गुरुकुल में संगणक - 15, कलरप्रिंटर -3, स्केनर आदि आधुनिक सुविधायें उपलब्ध हैं।
समीपवर्ती तीर्थक्षेत्र - शिरड़शहापुर -50 कि.मी., नेमगिरि - 70 कि.मी., आसेगांव - 40 कि.मी., शेलगांव -50 कि.मी.


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