About
g_translate
Show Original
g_translate
Show Translate
Shri Parshvanath Digambar Jain Temple with a dome of Mughal architecture in the center of the city is the ancient Jain temple of Tijara. Known as the Bade Mandir after the Dehra Temple, the construction work of this temple dates back to the 18th century AD.
According to the available evidence, the land for the construction of the temple was obtained on Ashadh Sudi Panchami V. No. 1861 and the construction work started in Jyeshtha Vadi Teras V. No. 1886. At that time there were 50 Jain families in Tijara.
The first floor was constructed in the first phase, later the second floor was constructed. Three altars were built in the Jinalaya. On the main altar, a dome-like spire was built, golden paintings in the inner part of the dome are still an attraction for the visitors. For the purification of the new altars and to get the idol established, a Rath Yatra was organized in V.No.1916, whose pavilion "Bali ki Sarai" was built near Holi Tiba. .
Ancient Statues - 6 statues including the original Nayak statue date back to the fifteenth century. The three idols of Parshvanath Bhagwan in Padmasana posture belong to the sixteenth century Purvadava of white stone. On which the articles of Samvat 1543 and 1548 are inscribed. There is a metal statue of Parshvanath Swami on which the inscription of Jyeshtha Sudi Panchami Samvat 1545 is inscribed. This idol was found in 1889 due to the erosion of the flood near the Dehra temple. From this period (Samvat 1548) the statue of one Chandraprabha Swami, the other of Mahavir Swami sits. The oldest statue here is of Samvat 1169. The mark of Tirthankara is not clear on this white stone idol. The pedestal is decorated with floral motifs. In this ancient temple of the city, the existence of the idols before the construction of the temple inspires consideration for the existence of other Jin temples. The receipt of idols from near the Dehra temple and the medieval writings on the statues clearly indicate the fact that there must have been a Jin temple here during the said period. As far as the number of Jain families at that time is concerned, the statement of "Colonel Tod" deserves attention. He mentions 80 Jain vasanas (merchant families) in the medieval period. Two fragmentary images are also stored in the temple. On which the articles of 1510 and 1549 are inscribed.
building new altars
Mrs. Jainmati D.P. La. Purna Chand Jain Delhiites got a new altar constructed in the Shastra Bhawan here in the year 1956. A three-day Rath Yatra was organized from 29 January to 31 January for the purification of the altar and the installation of the idol. Reputation work. Under the patronage of Bhattarak Shri Devendra Kitinji (Gaddi Nagaur), P. Kanhaiya Lal slogan was completed by Ashta Bhopal. On the new altars, 1 1/2 feet high eight metal iconic statues of Shri Mahavir Bhagwan were made to sit.
नगर के मध्य मुगल स्थापत्यकला का गुम्बद लिए हुए श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, तिजारा का प्राचीन जैन मंदिर है। देहरा मंदिर के प्रादुर्भाव के बाद बड़े मंदिर के रूप में जाना जानें वाले इस मंदिर का निर्माण कार्य 18वी शती ई•वी के बाद कि घटना है।
उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार मंदिर के निर्माण हेतु भूमि आषाढ़ सुदी पंचमी वि.सं.1861 को प्राप्त की गई थी और भवन निर्माण कार्य ज्येष्ठ वदी तेरस वि.सं.1886 मे आरम्भ हुआ। उस समय तिजारा में 50 जैन परिवार थे।
प्रथम चरण में पहली मंज़िल का निर्माण हुआ बाद में दूसरी मंज़िल का निर्माण कराया गया। जिनालय में तीन वेदियाँ मेहराबदार बनवाई गई। मुख्य वेदी पर गुम्बद नुमा शिखर बनवाया गया गुम्बद के अन्दरूनी भाग में स्वर्णमय चित्रकारी आज भी दर्शनार्थियों के लिए आकर्षण हैं। नवीन वेदियों की शुद्धि हेतू तथा मूर्ति प्रतिष्ठित कराने के लिए वि.सं.1916 में रथयात्रा का आयोजन किया गया, जिसका मण्डप "बली की सराय" होली टीबा के पास बनाया गया प्रतिष्ठा का समग्र कार्य पंडित सदासुख जी जयपुर वालों के तत्वावधान में सम्पन्न हुआ।
प्राचीन प्रतिमाऐं - मूल नायक प्रतिमा सहित 6 प्रतिमाऐं पंद्रहवीं शताब्दी की हैं। पार्श्वनाथ भगवान की पद्मासन मुद्रा में तीन प्रतिमाएँ श्वेत पाषाण की सोलहवीं शती के पूर्वादव की हैं। जिन पर सम्वत 1543 व 1548 के लेख अंकित है। पार्श्वनाथ स्वामी की एक प्रतिमा धातु की है जिस पर ज्येष्ठ सुदी पंचमी सम्वत 1545 का लेख अंकित है। यह मूर्ति देहरा मंदिर के पास बाढ़ के कटाव से सन्न 1889 में प्राप्त हुई थी। इसी काल की (सम्वत 1548) एक चन्द्रप्रभ स्वामी, दूसरी महावीर स्वामी की प्रतिमा विराजमान है। यहाँ प्राचीनतम प्रतिमा सम्वत 1169 की है। श्वेत पाषाण की इस मूर्ति पर तीर्थंकर का चिन्ह स्पष्ट नही है। पीठिका पुष्पों की आकृति से सुसज्जित है। नगर के इस प्राचीन जिनालय में मंदिर निर्माण से पूर्वकाल की प्रतिमाओं की विधमानता अन्य जिन मंदिरों की विधमानता पर विचार के लिए प्रेरित करती है। देहरा मंदिर के निकट से मूर्तिओं की प्राप्ति तथा प्रतिमाओं पर मध्यकाल के लेख इस तथ्य की ओर स्प्ष्ट संकेत करते है, की उक्त काल में यहाँ कोई जिन मंदिर अवश्य रहा है। जहाँ तक उस समय में जैन परिवारों की संख्यां का प्रश्न है "कर्नल टाड" का कथन ध्यान देने योग्य है। उन्होंने मध्य काल में 80 जैन वसना (व्यापारी परिवारों) का उल्लेख किया है। मंदिर में दो खण्डित प्रतिमाऐं भी संगृहीत है। जिन पर 1510 व 1549 के लेख अंकित है।
नवीन वेदियों का निर्माण
श्रीमती जैनमती ध.प. ला. पूर्ण चन्द जैन देहली वालों ने यहाँ के शास्त्र भवन में एक नई वेदी का निर्माण सन्न 1956 में कराया। वेदी शुद्धि एवं प्रतिमा जी को विराजमान करने के लिए 29 जनवरी से 31 जनवरी त्रिदिवसीय रथयात्रा का आयोजन किया गया। प्रतिष्ठा कार्य स्व. भट्टारक श्री देवेंद्र कितिंजी (गद्दी नागौर) की संरक्षता में प.कन्हैया लाल नारे आष्टा भोपाल द्वारा सम्पन्न कराया गया। नवीन वेदियों पर श्री महावीर भगवान की 1 1/2 फुट ऊँची अष्ट धातु की प्रतिष्ठित प्रतिमाऐं विराजमान कराई गई।
fmd_good
Parshvanath Digambar Bada Jain Temple,
Tijara,
Rajasthan,
301411
account_balance
Digamber
Temple