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पहला पहाड़ (विपुलाचल) :- इस पहाड़ पर चढ़ने के लिए 550 सीढ़ियाँ बनी हुयी है । विपुलाचल पर भगवान महावीर का सर्वप्रथम उपदेश हुआ था । भगवान का प्रथम समवसरण स्थली पर एक विशाल प्रथम देशना स्मारक का निर्माण हुआ है । जो भव्य एवं काफी आकर्षक है । सबसे ऊपर भगवान महावीर की चतुर्मुखी लाल रंग की विशाल पद्मासन प्रतिमा विराजित है । स्मारक के निचले हिस्से में काले पाषाण से निर्मित भगवान महावीर स्वामी की अति मनोज्ञ प्रतिमा बहुत ही खुबसूरत वेदी पर विराजमान साथ ही बड़े हॉल में चित्रकला प्रदर्शनी है । देशन स्थली स्मारक के अतिरिक्त विपुलाचल पर 4 दिगम्बर मन्दिर भी है । रास्ते में एक टेकरी मिलती है जिसे पंचतुकिया मंदिर भी कहा जाता है । जिसमे भगवान महावीर के चरण विराजमान है । समोशरण मंदिर के अतिरिक्त महावीर जिनालय मंदिर में खुबसूरत शीशे की नकाशी की गयी है ।                                                             

दुसरा पहाड़ (रत्नागिरि) :- यह दुसरा पर्वत पहले पर्वत से 2 कि०मी० की दूरी पर है । जिसमें 1 (एक) कि०मी० की उतराई है और 1 कि०मी० की चढ़ाई है । निचे उतरने के लिए 1292 सीढ़ियाँ बनी हुयी है । रत्नागिरी भगवान मुनिसुव्रत नाथ स्वामी की तप एवं ज्ञान स्थली है । यहाँ तीन दिगम्बर जैन मन्दिर है । यहाँ बाबु धर्म कुमार जी के नाम पर ब्रह्मचारिणी पंडिता चंदाबाई जी ‘आरा’ द्वारा निर्मित शिखरबंद मन्दिर है । जिसकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत् – 1936 में हुयी थी । इसमें भगवान मुनिसुव्रत नाथ जी की 4 फुट की कृष्ण वर्ण (काला) पद्मासन प्रतिमा स्थापित है ।                                                  

तीसरा पहाड़ (उदयगिरि):-दुसरे पर्वत (रत्नागिरि) से उतरकर 2 कि०मी० आगे उदयगिरि पर्वत मिलता है । यहाँ चढ़ाई प्रायः 1 मील की है । जिसके लिए 752 सीढ़ियाँ बनी हुयी है । ऊपर एक मन्दिर है जिसमें भगवान महावीर की एक खड्गासन प्रतिमा विराजित है जिसका वर्ण हल्का वादामी ओर अवगाहना 6 फुट है । इस मन्दिर का निर्माण श्री दुर्गा प्रसाद सरावगी ‘कलकत्ता’ निवासी ने वीर संवत् 2489 में कराया एवं मूर्ति प्रतिष्ठा करायी । नीचे उतरने पर एक जलपान गृह समाज की ओर से बनाया हुआ है जहाँ यात्री विश्राम एवं जलपान दिगम्बर जैन कमिटी की ओर से निःशुल्क करने की व्यवस्था करायी गयी है । 

चौथा पहाड़ (स्वर्णगिरि) :-यह स्वर्णगिरि पर्वतकरोड़ो मुनियों की निर्वाण भूमि है । जिसमें 1064 सीढ़ियाँ तथा 3 (तीन) दिगम्बर जैन मन्दिर है । इस पर्वत पर जानेवाले दर्शनार्थियों को सूचित किया जाता है कि स्वर्णगिरि पर्वत मन्दिर दर्शन हेतु स्थानीय थाना एवं क्षेत्र कार्यालय को लिखित सूचना दिये बगैर पर्वत पर यात्रा न करें । पर्वत पर जाने के लिए सुबह 6 बजे  प्रस्थान करे । सुरक्षाबल के साथ ही जाये । यहाँ मुख्य मन्दिर में भगवान शांतिनाथ की प्रतिमा स्थापित है । बायीं ओर भगवान कुंथुनाथ और दायीं ओर भगवान अरहनाथ की प्रतिमा स्थापित है । दूसरे मन्दिर में आदिनाथ की प्रतिमा स्थापित है एवं तीसरे में भगवान शांतिनाथ स्वामी के चरण चिन्ह स्थापित है । सन् 2009 में उपाध्याय निर्भय सागर जी महाराज के सानिध्य में मूल मन्दिर में चरण चिन्ह की जगह मूर्ति स्थापित करायी गयी थी ।                                                                          

पाँचवां पहाड़ (वैभारगिरि) :- यह पर्वत भगवान वासुपूज्य स्वामी को छोड़कर शेष 23 तीर्थंकरों के समवसरण स्थली है । यहाँ एक दिगम्बर जैन मन्दिर में भगवान महावीर की 4 फुट अवगाहना वाली श्वेत पद्मासन मनोग मूर्ति है । इसकी प्रतिष्ठा वीर संवत्  2489 में भागलपुर केश्री हरनारायण आत्मज वीरचन्द्र भार्या पुष्पादेवी ने करायी थी । यहाँ प्राचीन ध्वस्त तीन चौबीसी मन्दिर भी है । श्वेताम्बर मन्दिरों के अतिरिक्त यहाँ प्राचीन मगध साम्राज्य के शासक जरासंध द्वारा पूजित भगवान महादेव का एक प्राचीन मन्दिर भी अवस्थित है ।

नोट :- पर्वत तक जाने के लिए डोली एवं टाँगें की भी व्यवस्था है । जिसका रेट कार्यालय से आप प्राप्त कर सकते है ।

पहला पहाड़ (विपुलाचल) :- इस पहाड़ पर चढ़ने के लिए 550 सीढ़ियाँ बनी हुयी है । विपुलाचल पर भगवान महावीर का सर्वप्रथम उपदेश हुआ था । भगवान का प्रथम समवसरण स्थली पर एक विशाल प्रथम देशना स्मारक का निर्माण हुआ है । जो भव्य एवं काफी आकर्षक है । सबसे ऊपर भगवान महावीर की चतुर्मुखी लाल रंग की विशाल पद्मासन प्रतिमा विराजित है । स्मारक के निचले हिस्से में काले पाषाण से निर्मित भगवान महावीर स्वामी की अति मनोज्ञ प्रतिमा बहुत ही खुबसूरत वेदी पर विराजमान साथ ही बड़े हॉल में चित्रकला प्रदर्शनी है । देशन स्थली स्मारक के अतिरिक्त विपुलाचल पर 4 दिगम्बर मन्दिर भी है । रास्ते में एक टेकरी मिलती है जिसे पंचतुकिया मंदिर भी कहा जाता है । जिसमे भगवान महावीर के चरण विराजमान है । समोशरण मंदिर के अतिरिक्त महावीर जिनालय मंदिर में खुबसूरत शीशे की नकाशी की गयी है ।                                                             

दुसरा पहाड़ (रत्नागिरि) :- यह दुसरा पर्वत पहले पर्वत से 2 कि०मी० की दूरी पर है । जिसमें 1 (एक) कि०मी० की उतराई है और 1 कि०मी० की चढ़ाई है । निचे उतरने के लिए 1292 सीढ़ियाँ बनी हुयी है । रत्नागिरी भगवान मुनिसुव्रत नाथ स्वामी की तप एवं ज्ञान स्थली है । यहाँ तीन दिगम्बर जैन मन्दिर है । यहाँ बाबु धर्म कुमार जी के नाम पर ब्रह्मचारिणी पंडिता चंदाबाई जी ‘आरा’ द्वारा निर्मित शिखरबंद मन्दिर है । जिसकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत् – 1936 में हुयी थी । इसमें भगवान मुनिसुव्रत नाथ जी की 4 फुट की कृष्ण वर्ण (काला) पद्मासन प्रतिमा स्थापित है ।                                                  

तीसरा पहाड़ (उदयगिरि):-दुसरे पर्वत (रत्नागिरि) से उतरकर 2 कि०मी० आगे उदयगिरि पर्वत मिलता है । यहाँ चढ़ाई प्रायः 1 मील की है । जिसके लिए 752 सीढ़ियाँ बनी हुयी है । ऊपर एक मन्दिर है जिसमें भगवान महावीर की एक खड्गासन प्रतिमा विराजित है जिसका वर्ण हल्का वादामी ओर अवगाहना 6 फुट है । इस मन्दिर का निर्माण श्री दुर्गा प्रसाद सरावगी ‘कलकत्ता’ निवासी ने वीर संवत् 2489 में कराया एवं मूर्ति प्रतिष्ठा करायी । नीचे उतरने पर एक जलपान गृह समाज की ओर से बनाया हुआ है जहाँ यात्री विश्राम एवं जलपान दिगम्बर जैन कमिटी की ओर से निःशुल्क करने की व्यवस्था करायी गयी है । 

चौथा पहाड़ (स्वर्णगिरि) :-यह स्वर्णगिरि पर्वतकरोड़ो मुनियों की निर्वाण भूमि है । जिसमें 1064 सीढ़ियाँ तथा 3 (तीन) दिगम्बर जैन मन्दिर है । इस पर्वत पर जानेवाले दर्शनार्थियों को सूचित किया जाता है कि स्वर्णगिरि पर्वत मन्दिर दर्शन हेतु स्थानीय थाना एवं क्षेत्र कार्यालय को लिखित सूचना दिये बगैर पर्वत पर यात्रा न करें । पर्वत पर जाने के लिए सुबह 6 बजे  प्रस्थान करे । सुरक्षाबल के साथ ही जाये । यहाँ मुख्य मन्दिर में भगवान शांतिनाथ की प्रतिमा स्थापित है । बायीं ओर भगवान कुंथुनाथ और दायीं ओर भगवान अरहनाथ की प्रतिमा स्थापित है । दूसरे मन्दिर में आदिनाथ की प्रतिमा स्थापित है एवं तीसरे में भगवान शांतिनाथ स्वामी के चरण चिन्ह स्थापित है । सन् 2009 में उपाध्याय निर्भय सागर जी महाराज के सानिध्य में मूल मन्दिर में चरण चिन्ह की जगह मूर्ति स्थापित करायी गयी थी ।                                                                          

पाँचवां पहाड़ (वैभारगिरि) :- यह पर्वत भगवान वासुपूज्य स्वामी को छोड़कर शेष 23 तीर्थंकरों के समवसरण स्थली है । यहाँ एक दिगम्बर जैन मन्दिर में भगवान महावीर की 4 फुट अवगाहना वाली श्वेत पद्मासन मनोग मूर्ति है । इसकी प्रतिष्ठा वीर संवत्  2489 में भागलपुर केश्री हरनारायण आत्मज वीरचन्द्र भार्या पुष्पादेवी ने करायी थी । यहाँ प्राचीन ध्वस्त तीन चौबीसी मन्दिर भी है । श्वेताम्बर मन्दिरों के अतिरिक्त यहाँ प्राचीन मगध साम्राज्य के शासक जरासंध द्वारा पूजित भगवान महादेव का एक प्राचीन मन्दिर भी अवस्थित है ।

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