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चलो शीलोदय

चलो शीलोदय चलो शीलोदय

श्री आदिनाथाय नम

 श्री विद्यासागराय नम

  श्री सुधासागराय नम

शीलोदय के इतिहास में प्रथम बार

 अष्टांनिका महापर्व फाल्गुन अष्टमी दिनांक 27/02/23 से 07/03/23 वर्ष की करे भव्य धर्ममय आगवानी।

शीलोदय अतिशय क्षेत्र के इतिहास में प्रथम बार अष्टानिका महापर्व के पावन अवसर पर सह परिवार विधान में बैठ कर के धर्म लाभ लेवे!

 एवं जोड़े सहित मैना सुंदरी श्रीपाल बनकर विधान में सम्मिलित होने का सौभाग्य प्राप्त करें।

जय जिनेन्द्र बंधुओं

जैसा कि आप सभी को विदित है की पूज्य मुनि पुंगव सुधा सागर जी महाराज के आशीर्वाद से निर्माणाधीन शीलोदय तीर्थ स्थल पर अष्टनिका महापर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा पूज्य गुरुदेव मुनि श्री सुधासागर जी के परम शिष्य ब्रह्मचारी विनोद भैया जी जबलपुर (हनुमानताल) जिनकी मधुर मई वाणी पूज्य मुनि श्री के शिविर में हमने कई बार सुनी होगी जिनके कंठ में मां सरस्वती विराजमान है जिन्होंने अनेकों सिद्धचक्र विधान आदि का आयोजन कराया है ।

ऐसे आदरणीय विनोद भैया जी के सानिध्य में निर्देशन में यह सिद्धचक्र महामंडल विधान का आयोजन होगा।

देवपूजा गुरूपास्तिः स्वाध्यायः संयमस्तथा।

दानं चेति गृहस्थानां षट्कर्माणि दिने दिने ।

जैन परम्परा में सिद्धचक्र महामण्डल विधान का विशेष महत्त्व है । इसे अष्टाह्निकी पूजा के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि सिद्धचक्र विधान में समस्त पूजाएँ समाहित हो जाती हैं ।

भाव विशुद्धि के साथ इस विधान का अनुष्ठान करने से घर-गृहस्थी के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि गृहस्थ-जनों के जीवन भर में हुए ज्ञात-अज्ञात पापों के प्रायश्चित के लिए एक बार सिद्ध चक्र विधान अवश्य करना चाहिए।

इसे सर्वसिद्धिदायी और मंगलकारी विधान के रूप में जाना जाता है । महासती मैना सुन्दरी द्वारा इस विधान के अनुष्ठान से अपने पति श्रीपाल का कुष्ठ मिटाने की कथा जगत्प्रसिद्ध है। यही कारण है कि आज प्रत्येक श्रावक अपने जीवन में कम से कम एक बार यह विधान करने का मनोभाव रखता है।

सिद्धचक्र विधान का वाञ्छित लाभ लेने के लिए हमें इसका अर्थ और स्वरूप जानना भी अपेक्षित है।

सिद्ध- जो समस्त कर्म कलंक से मुक्त देहातीत परमात्मा हैं। चक्र का अर्थ है- समूह एवं मण्डल का आशय एक प्रकार के वृत्ताकार यन्त्र से है, जिसमें अनेक प्रकार के मन्त्रों एवं अक्षरों की स्थापना की जाती है । मन्त्र शास्त्र के अनुसार इसमें अनेक प्रकार की दिव्य शक्तियाँ प्रकट होजाती हैं। कोशकारों के अनुसार मण्डल शब्द का अर्थ है- दिव्य शक्तियों के आह्वान के लिए तैयार किया गया एक गुप्त रेखाचित्र। विधान शब्द का अर्थ है- साधन या अनुष्ठान यहाँ विधान का अर्थ एक ऐसे अनुष्ठान से है, जो हमारे इष्ट लक्ष्य की पूर्ति का साधन है।

विधान में सम्मिलित होने की व्यवस्था निशुल्क रखी गई है।

जो भी अपने नाम देना चाहते हैं वह शीघ्र संपर्क करें।

नोट ,सभी प्रकार की व्यवस्था शीलोदय तीर्थ क्षेत्र कमेटी की तरफ से की गई है!

 

 


एक वर्ष पहले

By : Shri Aadinath Digamber Jain Shiloday Atishaya Tirth Kshetra Samiti

चलो शीलोदय

चलो शीलोदय चलो शीलोदय

श्री आदिनाथाय नम

 श्री विद्यासागराय नम

  श्री सुधासागराय नम

शीलोदय के इतिहास में प्रथम बार

 अष्टांनिका महापर्व फाल्गुन अष्टमी दिनांक 27/02/23 से 07/03/23 वर्ष की करे भव्य धर्ममय आगवानी।

शीलोदय अतिशय क्षेत्र के इतिहास में प्रथम बार अष्टानिका महापर्व के पावन अवसर पर सह परिवार विधान में बैठ कर के धर्म लाभ लेवे!

 एवं जोड़े सहित मैना सुंदरी श्रीपाल बनकर विधान में सम्मिलित होने का सौभाग्य प्राप्त करें।

जय जिनेन्द्र बंधुओं

जैसा कि आप सभी को विदित है की पूज्य मुनि पुंगव सुधा सागर जी महाराज के आशीर्वाद से निर्माणाधीन शीलोदय तीर्थ स्थल पर अष्टनिका महापर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा पूज्य गुरुदेव मुनि श्री सुधासागर जी के परम शिष्य ब्रह्मचारी विनोद भैया जी जबलपुर (हनुमानताल) जिनकी मधुर मई वाणी पूज्य मुनि श्री के शिविर में हमने कई बार सुनी होगी जिनके कंठ में मां सरस्वती विराजमान है जिन्होंने अनेकों सिद्धचक्र विधान आदि का आयोजन कराया है ।

ऐसे आदरणीय विनोद भैया जी के सानिध्य में निर्देशन में यह सिद्धचक्र महामंडल विधान का आयोजन होगा।

देवपूजा गुरूपास्तिः स्वाध्यायः संयमस्तथा।

दानं चेति गृहस्थानां षट्कर्माणि दिने दिने ।

जैन परम्परा में सिद्धचक्र महामण्डल विधान का विशेष महत्त्व है । इसे अष्टाह्निकी पूजा के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि सिद्धचक्र विधान में समस्त पूजाएँ समाहित हो जाती हैं ।

भाव विशुद्धि के साथ इस विधान का अनुष्ठान करने से घर-गृहस्थी के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि गृहस्थ-जनों के जीवन भर में हुए ज्ञात-अज्ञात पापों के प्रायश्चित के लिए एक बार सिद्ध चक्र विधान अवश्य करना चाहिए।

इसे सर्वसिद्धिदायी और मंगलकारी विधान के रूप में जाना जाता है । महासती मैना सुन्दरी द्वारा इस विधान के अनुष्ठान से अपने पति श्रीपाल का कुष्ठ मिटाने की कथा जगत्प्रसिद्ध है। यही कारण है कि आज प्रत्येक श्रावक अपने जीवन में कम से कम एक बार यह विधान करने का मनोभाव रखता है।

सिद्धचक्र विधान का वाञ्छित लाभ लेने के लिए हमें इसका अर्थ और स्वरूप जानना भी अपेक्षित है।

सिद्ध- जो समस्त कर्म कलंक से मुक्त देहातीत परमात्मा हैं। चक्र का अर्थ है- समूह एवं मण्डल का आशय एक प्रकार के वृत्ताकार यन्त्र से है, जिसमें अनेक प्रकार के मन्त्रों एवं अक्षरों की स्थापना की जाती है । मन्त्र शास्त्र के अनुसार इसमें अनेक प्रकार की दिव्य शक्तियाँ प्रकट होजाती हैं। कोशकारों के अनुसार मण्डल शब्द का अर्थ है- दिव्य शक्तियों के आह्वान के लिए तैयार किया गया एक गुप्त रेखाचित्र। विधान शब्द का अर्थ है- साधन या अनुष्ठान यहाँ विधान का अर्थ एक ऐसे अनुष्ठान से है, जो हमारे इष्ट लक्ष्य की पूर्ति का साधन है।

विधान में सम्मिलित होने की व्यवस्था निशुल्क रखी गई है।

जो भी अपने नाम देना चाहते हैं वह शीघ्र संपर्क करें।

नोट ,सभी प्रकार की व्यवस्था शीलोदय तीर्थ क्षेत्र कमेटी की तरफ से की गई है!

 

 


एक वर्ष पहले

By : Shri Aadinath Digamber Jain Shiloday Atishaya Tirth Kshetra Samiti